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________________ नवेम्बर २०१४ चोरासि चहुटा जिहां, बेंठा साहुकार, नव नवविध बहु वस्तुस्युं, साच करें व्यापार ५ राज्य करें राजा तिहां, रामचंद्र अवतार, वंशविहारी दीपतो, तेजें जिम दिनकार. ६ तेह तणा तप तेजस्युं, अरियण नाठां जाय, जिम सार्दुला सिहस्युं, गेंवरघट्टा पलाय. ७ मीर अमीर महाबलि, दायम गाजीखांन नित नित वधतो जेहनें, मांन दीये सुलतान. ८ ॥ ढाल ॥ जी हो तेह नगर शुभ स्थानिके लाला, सकल गुणे परधान, जी हो चारित्रपात्रचुडामणि लाला, पंडितमांहि परधांन, चतुर नर भेटो श्रीगुरुभांण १ जी हो सासनपति श्रीवीरजी लाला, श्रीसुधरमां रे स्वामि, जी हो जंबुस्वामि प्रभवादिका लाला, अनोपमगुणअभिराम २ जी हो तेहनें पाटपरंपरा लाला, अंबरभासन सूर, जी हो श्रीश्रीविजयधरमसूरिंदजी लाला, नायक चढते नूर ३ जी हो सुंदर सुरत सोहति लाला, दीठा आवे दाय जी हो भविजन नयन-चकोरडां लाला, दिलरंजन निसिराय ४ - ४१ जी हो चतुर नमो गुरुचंद्रमां लाला, दिनदिन चढते नुर, जी हो सोल कलाई सोहतो लाला, उदयो पुण्यअंकुर ५ जी हो कुमतितिमर दुरें हरें लाला, पूरें मननी आस, जी हो तारा जिम अन्यतीरथी लाला, अधिकउ तास उल्लास ६ जी हो जिनसासन दरियो उल्लसें लाला, सुमतिरयण सुखकार, जी हो हरखित श्राविक श्राविका लाला, कुमद अने कासार ७ जी हो अमृतपूर झरें देखना लाला, संयमओषध सूध, जी हो आनंदित दिसि दिसि थई लाला, कुमतिवियोगणी दुख ८ जी हो नित्य उदय ए जाणियै लाला, राहु तणें वसि नांहि, जी हो जलधर पण नहीं ओलवें लाला, कलंक नहि इणमांहि ९ अनुसन्धान- ६५ जी हो सीतल मन साताकरूं लाला, उज (ज्ज) ल विमल अभंग, जी हो गुरुमुख ससिहर ओपमा लाला, राजें अविहड रंग १० जी हो चंदवदन गुरुजी तणो लाला, दीठो अति सुखकार, जी हो वंछितपुरण जगजयो लाला, सुंदर अति सुखकार ११ जी हो गुण अनंत गुरुजी तणा लाला, मुख कही न सके रे कोय, जी हो आप मुखे जो भारति लाला, जो कहें तो धन होय १२ जी हो श्रीविजयदयासूरिंदनें लाला, पटधारी सुप्रसिद्ध, जी हो श्रीविजयधर्मसूरिश्वरू रे लाला, नमतां हुवें नव निधि (द्ध) दूहा ४२ एक असंजम परिहर्यो, दुविध धरम उपदेस, त्रण्य तत्त्वपरसंगथी, जीता कषाय कलेस. १ पंच महाव्रत पालता घट काया आधार, भय सातें जिण भंजीया, चुर्या मद अठ मार. २ नव वाडि शुद्ध नित प्रतें पाले सिल सरीर, दसविह धर्म यतितणो, पालें थई महाधीर. ३ अंग इग्यारें जिणें भण्या, बालपणें सुविसेष, बार उपांग जिणें उपदिश्या, काठिया जित्या अशेष. ४ चउदह विद्या चुंपस्युं, भण्या सिद्धिगुणभेव, सोल कला संपूर्ण मुख, सत्तरह पुजां सदैव. ५ अष्टादस सिलांगरथ, अंगें लहिई आज, टालें दोष काउसग्गना, वीसठाण तर्पाहि समाज. ६ गुण इंकवीस श्रावक तणा, उपदेशक निसदीस, परीसह टालें परा, सुगडांगमध्ये त्रेवीस. ७ ॥ ढाल ॥ ईडर आंबा आंबलि रे ॥ दशा - कल्प - व्यवहारना रे, छविस भेद उदार, सत्तावीस गुण साधना रे, अठावीस आचार. १ चतुरनर भेटो श्रीगुरुभांण....... पापश्रुतपरिसंगने रे, निवारे गणधार, त्रीस महा मोहना रे, थांनिक वारे विचार. २
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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