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नवेम्बर - २०१४
अनुसन्धान-६५
एकमनां थई गुण ग्रहैं, भावना भावें हो भावें एकांत कें, ते नवि फरसें संसारमें, जनम जरा हो नावें थायें अंत कें. ७ धन मेरुवरजी तरुवरा, श्रीसीधवड हो रायणवड ठांम के, दोहग सहू दूरे टलें, लीजंता हो वली जेहनु नाम के. ८ धन शुक ने पारेवडा, जे सेवे हो गिरिपतिनो संग के, ऋषभजिणेसर संत ते, जे देखें हो मन धरि उछरंग के. ९ वली मोर नाग सरिखा पशु, मन धरता हो गिरनो ध्यान कें, अशुभ करम दुर करी, सुख पाम्या हो बहु देवविमान कें. १० इम वनचर नरवर मुनिवरा, जे करसें हो गिरवरनो जाप के, सेंदेवी(?) सिवपद लहि, टाल्या सह हो करमना संताप के. ११ सिद्ध अनंता इहां थया, थास्य वलि हो जांणो सिद्ध अनंत कें, ए तीरथ सदा सास्वतो, इंम भाखें हो श्रीमुख भगवंत के. १२ इणि गिरि प्रथम जिणेसरु, पूरव शुभ हो नवाणुं वार के, समवसरणनी रचना करि, मुनिगणि(ण)नें हो सहने परिवार के. १३ जिनवर सहु समोसा, नेमिश्वर हो जिन विना त्रेविस के,
ते हुं श्रीशेजगिरि, प्रणमुं सदा हो त्रिकरण निसदीस के. १४ काव्य : चिन्तारलमिदं समीहितविधौ पोतो भवाम्भोनिधौ.
दावककर्मवनौघदाहविषये पीयूषपूरो महान् । दुखातङ्कनिराकृताभयहतौ दुगै(गों) निधि[:] स्वागतो,
श्रीसिद्धाचलतीर्थ एष नियतं भूमौ चिरं राजते. १ दूहा :
श्रीसिद्धाचल सारिखा, जिहां तिरथ सुप्रसिद्ध, इत्यादिक गुणे जाणज्यो, सोरठ देस समृद्ध. २ वली तिरथ जिहांकिण वडो, गिरि मोटो गिरिनार, सुखकारी सोहामणो, भेटें सहु नर नारि. ३ दीक्षा ग्यांन समोसरण, जिहां किधां जिन नेम, पंचमगति साधी प्रभु, प्रमदाथी तजि प्रेम. ४
हरिबंधव यादवतिलक, करण भवोदधिपार, नेमि आव्या गिरि उपरें, वरदत्त मुनिपरिवार, ५ धन्य जिके जगजीवडा, जे नियनयणे नित्त, दरिसन फरसन गिरि तणो, करें सदा शुभ चित्त. ६ सुर नर किन्नर मुनिवरा, जपतां गिरिवरजाप, स्वदेहि शिवपद लहि, टाल्या कर्मना ताप. ७
ढाल | मिसरीनी ॥ श्रीगिरिनार सोहामणो, सिखर उन्नत असमान, चिहुं दिसि नीझरणां झरे हो साजन, निरमल नीर प्रधान. १ रैवतगिरि जांणो तुमे, सेजगिरिनो शृंग, प्रह उठी नित प्रणमीयें हो भविका, आंणि भाव असंग, २ वरदत्तादिक मुनिवरा, अणसण करिय उदार, सिवगति साधि सिध थयां हो साजन, तिण ए तीरथ सार. ३ राजुल राणि भव तणो, टालि दुखवियोग, नेमीश्वरथी इहां मलि हो भाविका, लें दीक्षा शुभ योग. ४ गजपदकुंडें गहकता, जे नर करे अंग शुद्ध, ते भवभ्रमण निवारिनें हो साजन, साधे शिवपद शुद्ध. ५ सहसावन सोहामणु, लाखावन ति[म] मल्हार, चंपक केतक मालति हो साजन, सोहें अति सहकार, ६ पातिक जाय पायें चढ्यां, गिर फरस्यां गहगाट, देवल नयणे देखता हो साजन, अलगो जाय उचाट, ७ सांमलवरण सोहामणि, मूरति मोहनवेलि, नयणे दीठा नेमजी हो भविका, साची सिवसुखरेल. ८ केसर-चंदन घसि भलो, मृगमदनो करि घोल, पवित्र थई जे पूजसें हो जिनजी, कर ग्रही रतनकचोल, ९ धुप अनोपम आरति, करें सदा सुखसंग, नाटिक नव नव रंगसु हो भविका, वाजत ताल मृदंग, १०