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________________ नवेम्बर - २०१४ अनुसन्धान-६५ सुणो वीरसासनधणी रे, गिरुआ निरुपम नाणी, अम्ह सांभलवा आसिकी रे, गुणखांणी तुम्ह वाणी, गुणखांणी तुम्ह वाणी मीठी, सांभलतां नहीं कहिई अनीठी, अमृतथी पणि अधिकी दीठी, जे करइ शिवरमणीस्युं वसीठी जी. ९ अहनिसि अम्ह हियडइ वसइ रे, इक तुं आतमराम, सास-उसासमां सांभरइ रे, सहस वार तुम्ह नाम, सहस वार तुम्ह नाम जपीजइ, करुणानिधि करुणा हिवई कीजइ, दिल खोलीनइ दरसण दीजइ, लाहो मनगमतो जिम लीजइ जी. १० हठिया कहिई नवि हुई रे, जे गिरुआ गुणवंत, आशा सहुनी पूरवई रे, जिम जलधर वरसंत, जिम जलधर वरसंत निरंतर, न करइं कोई साथई अंतर, तिम जगमां उपगारी पुरुषा, कहिइ सहुइ साथई सरिखा जी. ११ कागलमां लिखतां थकां रे, लागइ कारिमी वात, पणि तु अम्ह हियडइ वस्यो रे, वेधी साते धात, वेधी साते धात रे तनमा, वसिओ वीर ज्युं गोयम मनमां, ते जाणीनइ तपगछईस, करज्यो अम्हारी सफल जगीस जी. १२ तुं तन धन मन गुणनिलो रे, तुं अम्ह जीवित प्रांण, एहमां जो मिथ्या हुइ रे, तो तुझ चरणनी आंण, तो तुझ चरणनी आंण रे भाखी, कै वली केवली कहिइ साखी, तुझ पय छोडी अवरकुं पाखी, नमवानी नित आखडी आखी जी. १३ इम इकतारी जे धरइ रे, तेह तणी अरदास, ऊवेख्यइ स्युं पामस्यो रे, साहिबजी स्याबास, साहिबजी स्याबास वदीजइ, सेवक जननई दरसण दीजइ, जिम तुम्ह वयण सुधारस पीजइ, चरणकमलनी सेवा कीजइ जी. १४ निसिभर सूतां नींदरमा रे, जिम तुम दरसण दीसइ, तिणि परि परतखि जागतां रे, जब दरसण पामीसइ, जब दरसण पामीसइ वीसइ-विसवा ते दिन सफल गणीसइ, ते दिन कहिजे जोसी जगीसई, लाख दान लहइ ते बगसीसई जी. १५ पंथी परि-परि पूछीइ रे, आवता ए दिसि केरा, श्रीगुरुजी आवणतणा रे, कहि संदेसा भलेरा, कहि संदेसा भलेरा रे भाई, तेहनई दीजइ कोडि वधाई, धाई माणिक मोती वधाई, सोवनरसना तास घडाई जी. १६ चातक जिम जलधर दिसई रे, प्रेमई परि परि जोय, पंथ निहालइ तुम्ह तणो रे, तिणिपरि श्रावकलोय, तिणि परि श्रावकलोय दवाजइ, गोखई जोषई वाजतइ वाजइ, छयल छबीली छाजई छाजई, आवत गुरुदेखण काजई जी. १७ कागलमांहि केतलुं रे, लिखिइ आतमराम!, अक्षरि अक्षरि जाणयो रे, कोडि-कोडि परणाम, कोडि-कोडि परणाम अम्हारा, तुम्ह चरणे अवधारयो प्यारा, गिरुआ गुरुजी गुणभंडारा, वीरतखत दीपावणहारा जी. १८ तुम्ह दरसण देखण तणी रे, अधिक उमेदनी वात, नव-नव परि नविलेखमां रे, लिखतां आवइ धात, लिखतां आवइ धात'-सुता जो, पुहवीपट कागल करी ताजो, खीरसमुदरस भरि-भरि खडिआ, करइ सवि तरुअर लेखणि जडिआ जी. १९ पूज्य पधार्यइ पुण्यनो रे, थास्यइ लाभ अपार, ईति भीति भावठि जास्यइ रे, वरतस्यइ जय-जयकार, वरतस्यइ जय-जयकार जगतमां, सेवक आवस्यइ सहुइ भगतिमां, वीर समोसर्ये राजगृहई जिम, चउथो आरो थास्यइ इहां तिम जी. २० विजयदेवसूरिंदनी रे, पूरव तिथि संभारो, साहिपुरइं पधारिनई रे, शांतिजिणंद जुहारो, शांतिजिणंद जुहारो हेजई, कोटिकलानिधि चढतइ तेजई, सहसफणो-मनमोहनपास, वीर आदीसर पूरइ आसजी. २१ परतखि परता पूरता रे, करहेडो कलिकुंड, भाणीनंदन भेटीइ रे, पासप्रभू परचंड, १. धातानी सुता - सरस्वती ।
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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