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नवेम्बर - २०१४
अनुसन्धान-६५
सूरतस्थ-श्रीविजयदयासूरिजीने उद्देशीने सोझितथी रूपविजयजीनो (श्रीसङ्घनो) पत्र
पास प्रभू परचंड प्रतापई, अंतरीख जिन आपो आपई, सेव्यो संपति सघली आपई, जगि जसवाद हुइ जस जापइ जी. २२ ताजुं तीरथ त्रिण जगि रे, मोटुं माणिकसामि, नव-निधि घरि नित संपजइ रे, जपतइ जेहनइ नामि, जपतइ जेहनइ नामि निवाजइ, दिन दिन दीपतइ अधिक दवाजइ, भेटीइ भगवन ने भगवंत, अलवई अलवेसर अरिहंत जी. २३ वार वार स्युं वालहा रे, वीनवइ कर जोडि, तुम्हथी छांनो छइ नहीं रे, अम्ह तुम्ह वंदन कोड, अम्ह तुम्ह वंदन कोड सुजांण, ते जांणी जिणसासणभांण, वीर परंपर वड मंडाण, पूज्यजी वीनती करज्यो प्रमाण जी. २४ वीजापुरना संघनी रे, वीनती मांनी हेव, महिर करी मनमा घणी रे, दीजइ चरणनी सेव, दीजइ चरणनी सेव खास, गिरुआ गुरुजी गुणआवास, पंडित वृद्धिविजयनो दास, कनकविजय मन उल्लास जी. २५ ॥श्रीः।। इति श्रीवीजापुरसङ्घकारित-श्रीगुरुविज्ञप्तिरूप: स्वाध्यायः सम्पूर्णः ।
|| संवत् १७३२ वर्षे ॥
प्रस्तुत पत्र सोझित सङ्घमां बिराजमान कवि रूपविजयजीए दयासूरिजीने उद्देशीने सूरत नगरे पाठव्यो छे. कोईक कारणोसर पत्रनो आगळनो भाग के जेमा मङ्गलाचरण, सूरिजी जे नगरमा बिराजमान छे ते सूरतनगरनुं वर्णन, गुरुभगवन्तनुं वर्णन, पत्र ज्यांथी मोकलायो छे त्यांनुं वर्णन अने श्रीसंघनी विनन्तीवाळो भाग खण्डित थई गयो छे. संस्कृत ३ पद्योथी (खण्डित) पत्नी शरुआत थाय छे, शरुआतनी ढाळमां गुरुभगवन्तना मिलननी उत्कण्ठानु, गुरुगुणवैभवर्नु, सखीने उद्देशीने गुरुभगवन्तो पधार्या ते रजूआतनुं वर्णन सुन्दर छे. पछीनी ढाळमां विजयदयासूरिजीना गोत्र, माता-पितानुं नाम, आचार्यपदप्रदानस्थळ वगेरे ऐतिहासिक माहितीओ छे. छेल्ली ढाळ अमृतध्वनि प्रकारनी काव्यरचना छे. पदरचना गेयतामां जेटली सुन्दर छे तेटली ज समजवामां क्लिष्ट छे. पत्रान्ते श्रीसङ्घमां रूपविजयजीना चातुर्मासनी आराधनानी नोंध, चैत्यपरिपाटीनी चर्चावाळी विगत तेमज पूज्यश्री साथे बिराजमान भगवन्तोनी त्यां रहेला पूज्योने वन्दनानी विगत छे.
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हरखावजोजी । श्री१०८ श्रीपुजजी.. तन करावजोजी । श्रीपुजजी -न दिन अधिक परतापना -र लिखीनै संघनै हरख उपजाववो श्रीपरमपूज्यजीना सर्व, गुण किणही नर-नारीई, लिखित ए..... ज ओपमाई, पार प्रतै न पामइ ॥१॥ असितगिरिसम(म) स्यात् कज्जला(लं) सिन्धुपात्रे०|१|| [याव] द्वीचीतरङ्गान् वहती(ति) सुरनदी जाह्नवी पुण्यतोया, यावद्(दा)काशमार्गे स्त(त)पति दिनकरो भास्करो लोकपाल: ।