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नवेम्बर - २०१४
अनुसन्धान-६५
श्रीकनकविजयजीलिखित श्रीविजयप्रभसूरि पर प्रेषित श्रीबीजापुरसंघकारित-श्रीगुरुविज्ञप्तिरूपस्वाध्यायः
दक्षिणदेशना बीजापुर-साहपुर गामना श्रीसङ्घमां चातुर्मास पधारवा माटेनी विनन्तीरूप प्रस्तुत पत्र विजयप्रभसूरिजीने उद्देशीने लखायो छे. ओसवंशना साह शिवगणना पुत्र तेमज माता भाणीना लाडीला गच्छपति श्रीविजयप्रभसूरि माटेनो कविनो विशेष राग काव्यमां अवतरित थयो छे. गुरुदर्शननी झंखना पण प्रभुमिलनना तलसाट जेवी ज आतुरतावाळी होय छे तेनो प्रस्तुत कृति उत्तम नमूनो छे. चंद्राउलानी देशीमा रचायेल, अलङ्कारो-प्रासो-शब्दवैविध्यथी सभर कृति कर्ताना कवित्वने उद्योतित करे छे.
___कर्ता वृद्धिविजयजीना शिष्य छे. कर्ताना ज हाथे सं. १७३२ माघ सु. १०ना साहपुर गाममा ज लखायेल 'रत्नाकरपञ्चविंशतिस्तव-भावार्थ' नामनी एक बीजी पण कृति मळे छे.
प्रेमई तास जगीस वधारो, महिर करी मुनिराज पधारो, सेवक जननई कांइ विसारो, हाथि ग्रहीनई पारि उतारो जी. २
वाल्हेसरजी रे..... पूज्य पसायई इहां अछइ रे, सुखिया श्रावक लोक, श्रीगुरुचरणनी चाकरी रे, चाहई जिम रवि कोक, चाहई जिम रवि कोक सनेहई, मोरइं जिम मन बांध्यु मेहई, तिम अम्ह मनि तुं जिहां जिउ देहई, प्रेमई पूज्य पधारो गेहई जी. ३ वीरपाट अजुआलवा रे, तुं अवतरिओ वीर, अम्ह मन कनकनी मुद्रडी रे, तुं लाखीणो हीर, तुं लाखीणो हीर हियानो, तुं प्रभुजी जीवन जीयानो, मधुकर जिम नित कमलई रसिओ, तिम अम्ह मनडई तुं वाल्हा वासिओ. ४ साह-सिवगणकुल-सरवरई रे, तुं अवतरिओ हंस, अवनीतलिई अवतरी रे, दीपाव्यो ओसवंस, दीपाव्यो ओसवंस तई सामी, गिरूआ गछपति गजगतिगामी, तुम्ह पयसेवा पुण्यई पामी, अम्ह मनडाना अंतरजामी जी. ५ श्रीगुरुजी कहो एतली रे, सी अम्हची तकसीर, आज लगि जे अम्ह तणी रे, वीनती मांनो न वीर, वीनती मानो न वीरपटोधर, धरमसनेहई धरमधुरंधर, हरखई कहिइ जोडी हाथ, दरसण दीजइ वहिलुं नाथजी. ६ सेवकसेवा निरखीइ रे, परखीइ प्रीति सुजाण, वहिला आवी वालहा रे, श्रीजिणसासणभाण, श्रीजिणसासणभाण तुं दीसइ, तुम्ह मुख देखइ हियडलुं हींसइ, इक तुम्ह आणा वाहिइ सीसई, ए अवधारज्यो विसवावीसई जी. ७ सहज सनेही सहु तणा रे, सहु जगजनना मित्त, भाणीसुत भगवन सुणो रे, तुम्हस्युं लागुं चित्त, तुम्हस्युं लागुं चित्त अम्हारुं, मुख देखाडो वेगि तुम्हालं, आवी वयण सुणावो सारूं, तन-मनडा ठारणहारूं जी. ८
ए ई०॥ पंडित श्रीवृद्धिविजयगणिगुरूभ्यो नमः ॥
॥ देशी चंद्राउलानी ॥ विजयप्रभ वाल्हेसरू रे, परघल आंणी प्रेम, साहपुर केरा संघनी रे, वीजापुरना संघनी रे, वीनती मांनो एम, वीनती मांनो एम अम्हारी, गोदि बिछाइ करुं बलिहारी, साहिब सूरति लागइ प्यारी, जन-मनडानी मोहनगारीजी. १ वाल्हेसरजी रे, संघ करइ अरदास ते अवधारीइ रे, दक्षिणदेसि उल्लासि पूज्य पधारिइ रे [ए आंकणी] पाटभगत छइ इहां तणो रे, सकल संघ निसिदीस, दरसण देइ पूरीइ रे, प्रेमई तास जगीस,