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नवेम्बर
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२०१४
ए दिसि वेग पधारवो, अहमदानगर मझार, पुज्यजी, श्रीसंघ जोए वाटडी, ज्यं सारिंग घनधार, पुज्यजी. १४
चतुविध संघनी वंदना, घडीअ घडीनी जाण, पुज्यजी, संघनइ अति उमाहलो, सुणवा श्रीगुरुवाण, पुज्यजी. १५
एक वार......
आसो वदि दीपमालिका, इति मंगल गुरुवार, पुज्यजी, लेख लख्यो अति सुंदरूं, हुओ जय-जयकार, पुण्यजी. १६
एक वार......
विबुधा मांहिं सीरोमणी, कमलविजय गुरु सीस, पुज्यजी, ऊदयो आनंद अतिघणो, उदयविजय आसीस, पुण्यजी. १७ एक वार.......
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पूज्याराध्य नभोमणी, श्रीगछपति चरणांन, पुण्यजी, सेवक लेख पठाइओ, श्रीपुरनगर सुथान, पुण्यजी. १८
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एक वार.......
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॥ इति श्रीविजयदेवसूरीश्वरलेखं समाप्तमेतत् ॥ श्रीअहमदानगरे ॥ कल्याणमस्तु ॥ श्रीरस्तु ॥ शुभं भवतु ॥ श्रीः ||
एक वार......
(३)
कवि माणिक्यचदजीनो विजयदेवसूरिने पत्र
कवि माणिक्यचन्द्रजीओ प्रस्तुत कृतिनी रचना करी छे. जेवा भावो कृतिमां गुंथाया छे ते परथी कवि विजयदेवसूरि पर विशेष आदर धरावता हशे एवं चोक्कस विचारी शकाय कृतिना शरुआतनां पद्योमां विविध उपमाओ द्वारा गुरुभगवन्तोना गुणोनुं वर्णन करी कवि पोतानी गुरुमिलन अंगेनी उत्कण्ठा वर्णवे छे. कृतिमांनां केटलांक पद्योना भावो अन्य विज्ञप्तिपत्रमां मळता श्लोकोनी समान ज छे. प्रतमां केटलीक जग्याए प्रतिलेखन अशुद्ध थयेलुं जणाय छे तेथी २-३ पाठो समजी शकाया नथी. तो बीजी २-३ जग्याए पाठमां सुधारोपण करवो पड्यो छे.
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अनुसन्धान- ६५
॥ ६० ॥ स्वस्ति सदा तुझनइ हयो, श्रीविजयदेवमुणिंद, महिमा महियलमां घणो, तुं सबसूरिसूरिंद परम हितदायक सदा, लायक नायक खास, हीतकर प्रितिपात्र तुं, सब गुण - कलानिवास. मनमोहन आनंद तुं, मनवल्लभ विश्राम, मुझ मनमंदिर तुं वस्यो, तुं मुझ आतमरांम सकलसयणशिरोमणी, सकल गुंणलंकृतगात, कुमतांधकारनभौमणी, अखिलोपमा रही ख्यात. सो य देस नगर ज भलुं, जिहां गुरु करय विहार, धन्य ते नर-नारी सही, गुरुवाणी सुणे सार. श्रीगुरुवदन सोहामणुं, पेखई परम आनंद, पुण्य पवित्र जन जे होय, तस नर नयणाणंद. पुनिमनिशिनो चंदलो, मुखउपम सो तास अमृतसम जस बोलडां, सुणता होय उल्हास. अहनिसि मुखकज जोयवा, मुझ मन हरख अपार, जोतां तृपति ज नवि होइ, ते जाणे किरतार.
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