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________________ नवेम्बर - २०१४ अनुसन्धान-६५ (२) श्रीपुरस्थ-श्रीविजयदेवसूरिजीने उद्देशीने अहमदानगरथी उदयविजयजीनो पत्र श्रीपुरनगरमा बिराजमान श्रीविजयदेवसूरीश्वरजीने उद्देशीने लखाएल प्रस्तुत पत्रमा उदयविजयजीए पूज्यश्रीने अहमदानगर पधारवा माटे विनंती करी छे. श्रीपुरनगर माटे अन्य कशो उल्लेख काव्यमां मळतो नथी. काव्य नानु छे. शरुआतना पद्यमां क्षेम-कुशलना समाचार आपी कविए पछीनां पद्योमा गुरुभगवन्तने मळवा माटेनी उत्कण्ठा दर्शावतां ३ सुन्दर पद्यो मूक्यां छे. त्यार पछीना पद्यथी गुरुना गुणवैभवना लेखननी अशक्ति दर्शावतां ५ कल्पनात्मक पद्यो छे. काव्यना अन्ते मळती पत्रलेखनना समयनी नोंध तेमज कविना गुर्वादिना नामनी नोंध विशेष उल्लेखनीय छे. ॥ ई० ॥ पण्डित श्रीकमलविजयगणिगुरुभ्यो नमः ॥ ॥ राग : सारिंग मल्हार ॥ स्वस्तिश्री जिनपय नमि, श्रीपुर नगर सुथान, पुज्यजी, लखितं सेवक विनती, तुम्ह चरणे मुज ध्यान, पुज्यजी. १ एक वार वेग पधारवो, दीजइ सेवक मान, पुज्यजी, तुझ सम अवर कोइ नहीं, धन धन ताहरो ज्ञान, पुज्यजी. २ एक वार..... [आंकणी] कुशल-खेम वरतइ इहां, ते तुम्ह नाम प्रसाद, पुज्यजी, तुम्ह कुशलां नित पाहिए, अम्हनई हर्ष उल्हाद, पुज्यजी. ३ एक वार..... कागल केता हुं लखु, केता कहुं मुखवयण, पुज्यजी, श्रीगु[रु]नइ मिलवा भणी, वेगा देज्यो सयण, पुज्यजी. ४ एक वार..... तुम्ह चरणे मुझ मन वस्युं, ज्युं ऐरावण इंद, पुज्यजी, जिम मन हंस सरोवरें, ज्यु रे चकोरा चंद, पुज्यजी. ५ एक वार..... जिम समरइ सति(ती) पति, हस्ति समरइ वंझ, पुज्यजी, मधुकर समरइ मालती, तिम हुं समरू तुझ, पुण्यजी. ६ एक वार..... गुण मोटा दि नानडा, रात अंधारि होइ, पुज्यजी, कागल ते हुआं सांकडा, किम लखतां मन होइ, पुण्यजी. ७ एक वार..... मही समान कागल करूं, मसी भरूं समुद्र अपार, पुज्यजी, अहोनिस तुम्ह गुण हुं लखें, तो हि न आवइ पार, पुण्यजी. ८ एक वार..... मुझ मुख एक जीभडी, गुण तो कोडा-कोडि, पुण्यजी, तो किम किंकर लखि सक(के), मोटि एह ज खोडि, पुज्यजी. ९ एक वार..... आऊ करी इंद्रनो, लेखण स्वर्गह दंड, पुज्यजी, आठ पहर रवि उगमइ, [तो] गुण लखइ अखंड, पुज्यजी. १० एक वार..... श्रीगुरुना गुण अति घणां, केता कहं विस्तार, पूज्यजी, अक्षर तो बावन अछइ, गुणे न आवइ पार, पुज्यजी. ११ एक वार..... धन जे(ते) देस मनोहरू, धन जे(ते) गाम रसाल, पुज्यजी, धन जे(ते) श्राविक श्राविका, जे वंदइ तरकाल, पुज्यजी. १२ एक वार..... थोडइ लख्ये घणुं प्रीछज्यो, मुझ जीवन तुम्ह पास, पुज्यजी, जो निज सेवक लेखवो, आवि पुरो आस, पुज्यजी. १३ एक वार.....
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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