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________________ नवेम्बर - २०१४ अनुसन्धान-६५ निसि-दिन सूता-जागतां, अम चरण तुहमारा त्राण रे, खिण-खिण तुम गुण गाइई, तुम नामई कोडि कल्याणो रे २४ जय जेसिंग.... ज(जे)य वलता सुख-संयम तणां, पूज मोकलयो अह्म लेख जी(रे), सेवकनि संभारयो, जिम होइ हर्ष विशेष रे २५ जय जेसिंग.... संवत सत्तरपंचोत्तरे (१७०५), एतो धनतेरसिं सुविशेष रे, कीर्तिविजय वाचक शिष्यें, लिखिओ विनये विधि लेख रे २७(२६) जय जेसिंग.... ॥ इति श्रीलेख सम्पूर्णम् ॥ तेर गुण त्रंबावती रे, खेत्र तणां छइ जेह, तेणइ कारणि इहां आवq रे, चोमासइ धरि नेह १२ सुगुरुजी.... जिनमंदिर जिहां दुकडा रे, परिसरभूमि पवित्र, अति अलगी नहीं गोचरी रे, भगत लोक मुनिमुत्रि १३ सुगुरुजी.... श्रीसुखसागरपासजी रे, जिहां कंसारीपास, जगतारण जीराउलो रे, चिंतामणि सुखवास १४ सुगुरुजी.... इत्यादिक तीरथ घणां रे, शुभ [सोही जैसिंग, मंदिर अनि उपासिरा रे, सुरघर जिम अति चंग १५ सुगुरुजी.... ते किम मनथी मुकीइ रे, थंभ ती[२]थ गुण थाट जिहां गुरु हीरपटोधरइजी [रे], दीधो तुह्मनि पाट १६ सुगुरुजी... इहां होसई बहु लोकनि रे, बोधिबीज आरोप, तुम आवइ अरिहंतनई रे, शासन चढसइ ओप १७ सुगुरुजी.... पिसनघूक घू-धू करी रे, कलह उपाये कोप, ते तुम दिनकर ऊगमता रे, क्याहि थासइ अलोप १८ सुगुरुजी.... मीणतणी परि कारिमा रे, अवतरणा आटोप, तुह्म प्रतापरवि-तापथी रे, गलतो लहसइ लोप १९ सुगुरुजी.... लाभ घणा तुहमनि ह(हो)सइ जी, विवहारी वडचित्त, सातई खेत्रई वावरी जी, सफल करेसई वित्त २० सुगुरुजी.... ढाल ॥ राग - धन्यासी ॥ घj घणुं लिखिई किस्युं, तुझे सहजइ सघलं जाणो रे, खंभनयरना संघनी ए, वीनंती करो प्रमाण रे २१ जय जेसिंगपटोधरू, श्रीविजयदेवसूरिरायो रे, सुर नर राणा राजीआ, जस प्रेमइ प्रणमइ पाय रे २२ जय जेसिंग.... इणि काका)लि तुम समो को नहीं, ते तो जग सहू जाणई रे, कर्मई नडीआ बापडा, पणि मतीआ निज मत ताणइ रे २३ जय जेसिंग....
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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