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नवेम्बर - २०१४
अनुसन्धान-६५
खनभातथी श्रीविनयविजयजी उपाध्यायनो राजनगरस्थ-श्रीविजयदेवसरिजीने पत्र
उपा० विनयविजयजीनी रचनाशैलीथी प्रायः बधा विद्वानो परिचित हशे ज. तेमनी रचना अर्थनी दृष्टिए गम्भीर होय, छतां गेयतानी दृष्टिए एटली ज सरळ, पछी ते 'शान्तसुधारस' जेवा संस्कृत ग्रन्थो होय के श्रीपाळरास जेवी गुर्जर कृतिओ. प्रस्तुत कृति उपा० विनयविजयजी महाराजनी पत्रसंज्ञक रचना छे. विजयदेवसूरिजीने खम्भात चातुर्मासनी विनन्ती करवा साथे क्षेत्रसम्बन्धि माहितीनो चितार आपता शरुआतनां ७ पद्योमा कवि खम्भात चातुर्मास बिराजमान होई चातुर्मासमां थयेली आराधनानुं वर्णन करे छे. त्यार पछीना ८मा पद्यमां मेघने मन जेम नाना-मोटा सर्वे सरखा होय तेम आपने पण मन होवं घटे एम कही पूज्यश्रीने मीठो उपालम्भ आप्यो छे. शास्त्रमा चातुर्मासयोग्य भूमीना जघन्य १ मध्यम २ उत्कृष्ट ३ एम ३ भेद पाड्या छे. तेमां १३ गुण वाळी भूमी उत्कृष्ट होइ मुनिभगवन्तोने चातुर्मास माटे वधु योग्य कहेवाय. अमदावादमां विहार दुष्कर, गोचरी आघी, इत्यादि घणी प्रतिकूळता थशे. खम्भातर्नु क्षेत्र तेरे गुणथी युक्त छे. तेथी अमदावादथीय चढियातुं छे एम कही चातुर्मास पधारवा विनंती करे छे. खम्भात पधारता विविध तीर्थोनी वन्दना तो थशे ज, साथे जेसिंगजी (विजयसेनसूरिजी) गुरुना स्तूपनी य वन्दना थशे एवं मीटुं प्रलोभन पण मूके छे. अथी य विशेष 'आपने ज्या पदप्रदान करायुं ते स्थान आपनाथी केम विसरी शकाय?' एम कही मीठी लागणीओ द्वारा सूरिजीने चातुमासार्थे तैयार करवा प्रयत्न करे छे.
छल्लो पद्योमा आपना पधारवाथी श्रीसंघमां शासनप्रभावनानां कयां कयां कार्यों थशे तेनो कविए मार्मिक अहेवाल आप्यो छे. सम्पूर्ण कृति खरेखर सुन्दर छे. काव्यमां नौधायेल जिनेश्वर प्रभुना तीर्थोनो तेमज गुरुस्तूपनो उल्लेख ऐतिहासिक दृष्टिए घणो महत्त्वनो छे.
श्रीलेखः स्वस्तिश्री प्रणमुं सदा रे, पास जिणेसर पाय, लेख लिखुं गुरुरायनि, पामी तुम पसाय सुगुरुजी ! पधारो रे, खंभनयरनो आज सोभाग वधारो रे विनती ए महाराज के मनि अवधारो रे ॥१॥ सुगुरुजी [आंकणी] खंभनयरथी वीनवई रे, संघ धरी मनि रंग, खेम-कुशल वर्तइ इहां, तुम नामइ उछरंग २ सुगुरुजी !.... इहां वखाण प्रभावना रे, नंदिमहोत्सव सार, उपधानादिक तप होई, बार व्रतउच्चार ३ सुगुरुजी !... सत्तरभेद जिनमंदिरई रे, पूजा सबल मंडाण, भावइ पावन भावना, श्रावक सब विधिजाण ४ सुगुरुजी !... परव पजूसण पणि हवां रे, विविध महोत्सवधाम, साहमीभगति प्रभावना, प्रमुख हवां शुभ काम ५ सुगुरुजी !... चतुर ! चतुरविध संघनी रे, नति अवधारो नित्त, श्रीआचारजप्रमुखनि, कहियो कोमल चित्त ६ सुगुरुजी !... उत्कंठा अह्मनि घणी रे, देखण तुम देदार, वेगि पूज पाउधारीई, करवा अह्म उपगार ७ सुगुरुजी !...
ढाल ॥ राग-केदारो ॥ देस-विदेसि इणी परि रे, कीध विहार अनेक, देइ उपदेस अबूझनि रे, कीधा सबल विवेक. ८ सुगुरुजी ! वेगि पधारो आंहि, थंभतीरथपुर मांहि सुगुरुजी...[आंकणी] हवइ अमनि वंदाववा रे, म करो पूज्य विलंब, जलधरनि मनि वरसतां जी, सरखा अंब-कदंब ९ सुगुरुजी.... राजनगरि किम संचीइ रे, जिहां दुष्कर विवहार, मुनिवर अलगी गोचरी रे, कादम-कीट अपार १० सुगुरुजी....