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पामेल नन्दीश्वरद्वीपना (बावन) जिनालयमा चौमुखजीनी प्रतिष्ठा-प्रसंगे पधारवानो आमन्त्रण पत्र छे. तारङ्गागढ, वडनगर, गढवाडा, सीपोर - बधां गामोनां महाजनोए संयुक्त रीते ते पाठवेल छे. इतिहासनी एक नक्कर विगत आमां उपलब्ध थाय छे के ते वखते तारङ्गातीर्थनो प्रबन्ध आ बधां महाजनो संयुक्तपणे करतां हां, कोनी अने क्या प्रतिष्ठा? एवो प्रश्न अस्थाने लागे छे. आ पत्रिका ते समग्र मन्दिरनी प्रतिष्ठा माटेनो पत्र होवार्नु मानवू जोईए. सं. १८८०ना मागशरनो पत्र छे, अने महा शुद ५नी प्रतिष्ठा छे.
बीजी कंकोतरी अमदावादना नगरशेठ वखतचंद खुशालचंद तरफथी लखवामां आवी छे, आमां १८८३ना वर्षे अमदावादथी शत्रुञ्जयना संघर्गे आमन्त्रण छे. विलक्षणता ए छे के पो.व.९नुं मुहूर्त छे, अने महा सुद नुं प्रयाण जणाव्युं छे.
कार्तक (१८८३) थी कार्तक (१८८४) - एम एक वर्षतुं 'मुंडकुं' एटले पालीताणाना काठी-गोहिल दरबारो तरफथी रखोपाना बदलामा लेवातो माथादीठ यात्रावेरो, नगरशेठे (सहु यात्रिक जनो माटेनो) चूकवी दीधो छे; तेमज भावनगर, तळाजा, घोघा - आ क्षेत्रोमां पण, त्या-त्यांना राजशासन द्वारा, संघ/यात्रिको आवे तो जे कोई कर वसूलातो होय, ते बधो पण, १२ मास पूरतो, तेमणे चूकवी दीधो छे. तेथी यात्रा माटे तथा संघ साथे पधारनारे ते सम्बन्धी कोई चिन्ता राखवी नहि, तेवं सूचन पण आ पत्रमा थयुं छे, जे ऐतिहासिक विगतलेखे महत्त्वपूर्ण छे.
उपरांत, शेठे इंगर उपर बंधावेल नवा देरासर (उजम फोईनी टंक हशे?)नी फा.शु. ४ना गुरुवारे प्रतिष्ठा थनार छे ते विगत पण आमां नोंधाई छे. (आ कंकोतरीनुं चित्र अङ्कना चोथा मुखपृष्ठ पर आपवामां आव्युं छे.)
ऐतिहासिक मूल्य धरावती आवी कंकोतरीओ आपणने मळे अने ते आ विज्ञप्तिपत्रो साथे प्रगट थाय छे, ते पण एक उपलब्धि ज गणाय,
पूरक नोंध १. आ पत्रोमां गच्छ, गच्छपति जेवा शब्दो वारंवार आवे छे. ते अंगे अनभिज्ञ
जनो माटे थोडीक स्पष्टता : जैन धर्म-संघमां मुनिओनी प्रधानता होय छे. मुनिओना समूहने 'गण' के 'गच्छ' तरीके ओळखाय छे. ते गच्छना वडील-सर्वोच्च आचार्य 'गच्छपति' के 'गच्छनायक' तरीके ओळखाय,
आवा गच्छो विविध-घणा होय छे. क्यारेक ८४ गच्छ हता. जुदा जुदा हेतुसर साधुसमूहो विभक्त थईने अन्यान्य गच्छना नामे जाणीता थाय. कोईक व्यक्ति, स्थळ, घटना, ज्ञाति - आवा विभिन्न पदार्थोनां नामे गच्छो स्थपाता होय छे. एकेक गच्छमां पण पेटाजूथो होय, जे 'संघाडा' के 'समुदाय' तरीके
ओळखाय. २. विज्ञप्तिपत्रोना आ चोथा अङ्क विभागमा ३५ पत्रो प्रगट थाय छे. आ तमाम
पत्रो (तथा केटलाक प्रगट नहि थता-नहि करेला पत्रो पण), जे ते भण्डारो-सङ्ग्रहोमांथी शोधी काढवानु, प्राप्त करवायूँ, तेमनी प्रतिलिपि करवानु, यथामति सम्पादन करवानुं - आ बधां ज कार्य अमारा उत्साही तथा अध्ययनशील बे भाई - मुनि सुयशचन्द्रविजयजी तथा मुनि सुजसचन्द्रविजयजीए कयु छे. तेमना विद्वान् गुरु आ. श्रीविजयसोमचन्द्रसूरिजीनी प्रेरणा तथा अनुमति आ कार्यमां तेमने माटे आशीर्वादरूप बनेल छे. ए
रीते, आ समग्र अङ्कनुं सम्पादन-श्रेय ते बे मुनिराजोने फाळे जाय छे.. ३. ते बन्ने मनिओए जे जे स्थानेथी सामग्री प्राप्त करी छे तेनी नोंध आ प्रमाणे छे:
(१) क्रमाङ्क१,२,६,७,१४,१५,१६, २२, २६, २९,३२= श्रीकैलाससागरसूरि जैन ज्ञानमन्दिर, कोबा; (२) क्र. ४, ५,८,९, १३, २३, २७, ३४, ३५ = ला. द. भा. सं. विद्यामन्दिर, अमदावाद, ह.पं. जितुभाई; (३) क्र. १८,१९, २१ % आर्य जम्बूस्वामी जैन मुक्ताबाई ज्ञानमन्दिर, डभोई; (४) क्र. १०, ११ = श्रीरत्नाकरविजयजी ज्ञानमन्दिर, महुवा; (५) क्र.३०, ३३ = श्रीनेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर, सूरत; (६) क्र.३१ = श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर, पाटण; (७) क्र. २० = श्रीभीलडियाजी जैन ज्ञानमन्दिर, ह. आ. श्रीमुनिचन्द्रसूरिजी; (८) क्र. १७ = श्री केसरबाई जैन ज्ञानमन्दिर, पाटण, ह. मुनिश्रीधुरन्धरविजयजी; (९) क्र. २५ = शेठ डोसाभाई अभेचंद जैन ज्ञानभण्डार, भावनगर, ह. आ. श्रीनिर्मलचन्द्रसूरिजी; (१०) क्र.३ = वीरबाई जैन पाठशाला, पालीताणा, ह. उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; (११) क्र. २४ = भो.जे. विद्याभवन, अमदावाद, ह.श्री रामजीभाई सावलिया; (१२) क्र. १२, २८मां प्राप्तिस्थाननी नोंध नथी; आ तमाम ज्ञानभण्डारो-ग्रन्थालयोनो, तेना संचालको-ट्रस्टीगणव्यवस्थापकोनो तथा आ सामग्री मेळववामां सहायकर्ताओ - तमामनो ते बेउ