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आ पत्र खरतरगच्छ के लोंकागच्छ साथे सम्बन्ध धरावतो होवाथी अटकळ थाय छे, नयनसुख, रामदास, हंसराज स्वामी, तेमना गुरुलेखे कल्याणमल्ल - आवां नामो आ गच्छोमां होवानुं संभवे छे.
गङ्गा अने सतलज-बे नदी ते शहेरनी नजीकमां वहे छे तेवो उल्लेख जोतां त्रिकुटनगर ज पंजाबचें कोई शहेर के गाम होय तेवू अनुमान थाय छे. गुरुने चन्द्रनी तथा सूर्यनी उपमा आपवा द्वारा तेमनुं वर्णन करवामां कविए कृपणता नथी दाखवी.
(३२) आ एक नवी ज भातनो पत्र छे. एक मारवाडी श्राविकाए एक साध्वी गुरुणी उपर लखेल आ पत्र छे. पत्र पालीताणाथी लखायो छे. लिखितंग लखनार पोतानुं नाम नथी लखतां, पण पोतानो निर्देश आ प्रमाणे करे छे : "पालीताणासु लिखतु हेमचंदारा दादीजी नथमलजीरा भुजीका" अर्थात् "हेमचंदनी दादी अने नथमलजीनी भोजाई"ना खामणां. पत्र साध्वीजी पूनमश्रीजी उपर लखायो छे. ते कया क्षेत्रमा विराजतां हशे तेनो निर्देश नथी. मङ्गलमा १. चिन्तामणि पार्श्वनाथनुं स्मरण छे, ते जसकोरनी धर्मशालाना देरासरना भगवान हशे तेम मानी शकाय; २. ते पछी आदिनाथजीनुं तथा साथे १४५२ वजीर (गणधर), स्मरण छे, ते शत्रुञ्जय परना दादा आदिनाथ तथा १४५२ गणधरपगलांनुं स्मरण लागे छे. चोथा दहामां कांईक विगत होवान लागे. पण स्पष्टता नथी थती. 'नगर अतहि रत्न' एटले शु? श्रेष्ठ रत्न जेवू नगर ? के रत्नपुर? (रतनपुर?). 'सुखेज' पद कोई नाम हशे ? 'सरदारसिंह' तो प्रगटपणे राजानुं नाम छे. एक अनुमान थाय के आ दूहामां सूचवाता क्षेत्रमा साध्वीजी बिराजता होवां जोईए.
५-१५ क्र. ना दूहाओमां १-२७ गुणोनुं वर्णन छे. 'साध्वी' साधुपदमां गणाय, ने ते पदना २७ गुण तेमनामां पण संभवे. ते पछी गद्य विशेषणो आवे छे. पछी पुन: दूहा शरु थाय छे. तेमां दूहा ३मां 'तज' छे त्यां 'भज' होय तो वधु उचित लागे छे. 'समान विशेष' ते 'सामान्य अने विशेष' बे पदार्थोनो उल्लेख छे. जिनआगममां ते बेने, वैशेषिकोनी जेम, परस्पर-निरपेक्ष-स्वतन्त्र पदार्थ नहि, पण परस्परसापेक्ष अने द्रव्यादिना धर्मरूपे स्वीकारवामां आव्या छे, तेनुं अहीं सूचन थयुं जणाय छे. ४मां नव तत्त्वनी वात, ५मां स्व-पर-व्यवसायी
ज्ञान ते सम्यग्ज्ञान तेमज १ थी ९ तत्त्व(?) भेदनी वात करी छे. ६मा निजगुणपरगुणना सन्दर्भमां स्वभाव-परभावनी वात छे. आ रीते दरेक दूहामा गम्भीर तत्त्वज्ञाननी वातो गुंथी लीधी छे, अने ते तत्त्वनुं ज्ञान गुरुनी सेवा करनार जीव गुरुयोगे मेळवी शके (२२) तेम पण कयुं छे. आ दूहा वांचतां लखनार श्राविकाना श्रुतबोध तथा रचनाशक्ति माटे भारे बहुमान जागे छे. जो के केटलांक वाक्यो समजातां नथी, शुं कहेवा मागे छे ते स्पष्टता नथी थती.
१७मा दूहाथी वळी १-२७ गुणोनुं वर्णन शरु थाय छे, जे परम्परागत रीतनुं छे, छेवटना गद्यांशमां साध्वीओनां नाम छे, अने क्षमापना निवेदन छे. पत्र तात्त्विक दृष्टिए महत्त्वपूर्ण छे.
(३३) आ पत्र विज्ञप्तिपत्र करतां आनन्दना अने अनुमोदनाना समाचार आपतो पत्र होवानुं वधु संभवित जणाय छे. कया नगरे कोना उपर लख्यो छे ते विगत नथी, पण सातमा दूहामां "तत्र श्री.... नगरे" एम छे तेथी आ एक खरडो के ड्राफ्ट हशे, जेनी नकलोमांजे ते गामनुं नाम उमेरी मोकलवानो हशे.
बाबसाहेब धनपतसिंहजी ते जेमणे कलकत्तामा आगमोनुं प्रकाशन कयु ते, बाबुना देरावाळा. १४मा दूहामां आवता प्रतापसिंह ते प्रचलित शत्रुञ्जयनुं स्तवन 'सिद्धाचलगिरि, भेट्या रे, धन्य भाग्य अमारां' - एमां आवती पंक्ति 'प्रभुजीके चरण प्रताप के संघमें', तेमांनो 'प्रताप' शब्द - तेज होय तेम लागे छे. रतनविजय कया गच्छ-संघाडाना? तेमना गुरु कोण? ते स्पष्ट नथी थतुं. उपर उल्लिखित स्तवनमां आवतुं नाम 'खीमारतन' साथे एमनो सम्बन्ध होय तो शक्य छे. पण प्रतापसिंहनी सुशील पत्नीनी भावनाथी तेमणे बालुचरमां भगवतीसूत्रनुं वांचन कयु हशे, तेनी वधामणी आपवा माटे लखायेलो आ पत्र छे. प्रथम पद्यमां ज 'प्रणमी तज अहमेव' एवं पद छे. तेनो मतलब छे- "प्रणाम कर अने 'अहमेव - हुंज' एवा अहंकारनो त्याग कर." आ रीते वात मांडनार कविनी अध्यात्ममस्ती अहीं व्यक्त थाय छे. सं. १९१९मां आ प्रसंग बन्यो छे, पत्र लखायो छे.
(३४-३५) आ बे पत्रो कंकोतरी के आमन्त्रण पत्रो छे. पहेलो पत्र तारङ्गातीर्थे निर्माण