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(२८)
आ पत्र एकंदरे अन्य पत्रो समान छे. आमां भाषा काव्यो बहु ओछां अने सामान्य छे, सं. पद्यो ५३ छे, अने विस्तृत गद्यांश छे. पद्यो अशुद्ध खरं, पण कर्तानी विद्वत्ता तेमां डोकाय छे. एक बे पद्योनो आस्वाद लईए पद्म २४मां कवि कहे छे के "जैन मत अनुसार, 'छाया (पडछायो ) ' ए भावात्मक अर्थात् पौद्गलिक पदार्थ छे, अने ते साचुं पण लागे छे. एटला माटे के पार्श्वनाथनी छाया थकी आच्छादित मनुष्यो दुःख- दुर्गतिने पामता नथी होता." (आवुं तो ज बने के जो 'छाया' पदार्थ होय) पद्य ४१मां वळी कवि आकाशनी वात करे छे: "आकाश माटे 'शून्य' एवी संज्ञा प्रयोजाय छे, (अने ते तेनो दोष छे), तेनो आ दोष, अ नगरना श्रेष्ठीओनी ऊंची गगनचुम्बी हवेलीओ थकी आपोआप टळी जाय छे. अर्थात् ए हवेलीओ आकाशमां छवाई जईने तेनी शून्यताने भूसी नाखे छे" आम, नवीन कवि-कल्पनोनां छंटणां आ पद्योमां जोवा मळे छे. आ पत्र पण सचित्र छे, अने तेमां रिक्तलिपिमां 'भट्टारक लक्ष्मीसागरसूरी' एवा अक्षरो आलेखाया छे.
(२९)
पेसकपुर ते मारवाडनुं पेसुआ गाम कुबेरधनहेतपुर ते बीकानेर न होई शके. धनपुर (धनारी?) नामे कोई गाम होय तो बने आम तो आ पत्र सामान्य कक्षानो गणाय. सं. १८६१मां तपगच्छना हर्षरत्नसूरिशिष्य राजेन्द्रसूरिने लखायेलो पत्र छे. नगरनुं वर्णन 'गजल-चाल 'मां थयुं छे. विशेष कशी विगत जोवा मळी नथी.
(३०)
आ पत्र मालवणी लखायो छे. मालवण पाटण पासे छे, सुरेन्द्रनगर विस्तारमां पण एक मालवण छे. आ पत्रनिर्दिष्ट मालवण ते पाटण पासेनुं होय तेवी सम्भावना वधु पत्र रत्नविजय पर छे. लखनार व्यक्ति तेमना प्रति गाढ स्नेह धरावता होय तेवो भाव पत्रमां डोकाय छे. लेखक पोताना पत्रने 'प्रेमपत्र' (८) गणावे छे, ते आज वातनुं द्योतक छे. पत्रारम्भे 'परमेष्ठिनुं स्मरणमङ्गल थयुं छे. कडी ७मां चन्द्रप्रभु (मालवण) नो उल्लेख छे.
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लेखक मूलतः अजैन अने कदाच दशनामी सम्प्रदायना साधुना कुळना हशे तेवुं अनुमान, दूहा क्र. ५ जोतां थाय. ए दूहामां कर्ता पोताने 'गोरखकुळ' ना वर्णवे छे. पोते अणघड छे पण 'शम्भुप्याला' (भांग ? ) ना सेवनथी साते धातु खीली उठे छे आ विधान उपरनुं अनुमान प्रेरे तेवुं छे.
कवि 'बारोट' होय तो ते वधु सम्भावित छे. केमके पत्र जेना पर लखे छे ते वडील होवा छतां तेने 'तुं'काराथी उल्लेखे छे : "चिरंजीवी रहो तुं सदा" (६). आवुं जन्मजात बारोट ज लखी शके.
कडी १३ मां नित्यानन्द, फते, जयसिंह वगेरे, तथा क. १५मां चतुर, रामआ बधां विशेष नामो होय तेम जणाय छे.
१४मी कडीमांनी वातो पर लक्ष्य आपतां एम थाय के पत्रलेखक 'मुनि' नहि होय; गृहस्थ व्यक्ति हशे समग्रपणे पत्रनुं अवलोकन करतां आ छाप ज उपसे छे.
"नयणा आडा डुंगरा, मन आडुं नहि कोय" आ एक स्नेही हृदयमांथी उगेली स्वाभाविक स्नेहोक्ति छे. "तमे एटला दूर छो के तमने दैहिक रीते मळवामां आडा घणा पहाडो (अवरोधो) नडे, पण 'मन' थी तमने जोवासंभारवामां तो आवुं कशुं ज नडे तेम नथी. (तमारा जेवा) सज्जन जननो मेळावडो (मने) मळयो, ते पुण्य विना न मळे !"
क. १७मां प्रयुक्त 'बीमणो' शब्द 'बमणा-द्विगुणित' अर्थमां छे. 'भाईजीथी अंतरभाव थयो छे'- ए वाक्यनो मर्म पकडवो कठिन छे. 'भाईजी' शब्द रत्नविजय माटे हशे के अन्य कोई माटे ? घणा भागे अन्य कोई माटे होवो जोईए, 'अंतरभाव' एटले 'अंतरनो भाव' पण थाय, अने अंतर- आंतरुं दूरता पण समजाय. २०मी कडीमां कदाच आनुं कारण आपवामां आवे छे: 'दांणा पांणीको जोर हैं' 'दाणापाणी' एटले 'अंजळपाणी' के 'लेणादेणी'.
आखा पत्रना तात्पर्य विषे सुज्ञ जनो प्रकाश पाडे तेवी अपेक्षा.
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'रामचरितमानस'नी भाषा तथा शैलीमां, दूहा- चौपाई ओमां बद्ध, आ नानकडो पत्र तेनी भाषा तथा कल्पनाने कारणे एक मजानी कृति बनी गयो छे.