SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवेम्बर - २०१४ ३१७ ३१८ अनुसन्धान-६५ वांणी प्रगटी गुरुमुखें, जिम जलधर गाजंत, भविकमोर सुणि उलसते, पापतिमिर भाजंत. रजत-हेमना देवकुसुम, मुक्ताफल बहुमोल, नित प्रति चढत हे सूत्र पर, जैसें जलधिकल्लोल. विवाहपन्नत्ती सूत्रनी इणविध वचत हे अत्र, तुम श्रीसंघ इह वांचिनें, अनुमोदज्यो थे तत्र. २१ ॥ इति पत्रम् ॥ तत्र श्री....... नगरे, सबही श्रीसंघजोग, वांचज्यो आदर करी, साधर्मी सहु लोग. अप्रं च इक समंचार हे, परम पुनीत श्रीकार, वांचत ही अनुमोदना, करज्यो साहूकार. परउपगारी परमगुरू, परतख परमदयाल, परमेशरकी भगतिमें, अहनिशि रहत खुस्याल. नही तवक्का कोइका, नही किसीमें राग, नही कोईसें द्वेष हे, नही किणहीसें लाग. जैसे गुणगणधर मुनि, रतनविजय महाराज, विचरत भूमंडल विर्षे, आये इहां विराज. तव श्रीसंघ सरव मिली, कीध महोच्छव सार, अति आडंबर हर्षसें, ल्याये नगर मझार. धनपतिदत्त भवन विर्षे, वर्तमान चोउमास, मुनिवर ठायों हर्षसें, जाने सकल जहांन. प्रतापसिंहजीकी वधू, परम सुशीला जेह, आण्यो मनमें भाव अति, रोमांचित करि देह. सुणुं शास्त्र में भगवती, जिम होय पावन गात्र, भविकजीव निसतारवा, मुनि आये गुणपात्र. शुभदिन शुभमहुरत-घडी, गजपर छत्र धरंत, धवल-मंगल गावे सधव, उज्जल चमर ढलंत. गाजा-वाजा वाजते, खलकलोककी साख, दसूं दिशा प्रगटी छटा, जनमुख जय-जय भाख. इणविधि विधिपूर्वक करी, पंचमांगजी सूत्र, ल्याये मुनिवर पासमें, धर्मवंतके पुत्र. संवत् नारदमेदनी-ग्रहगोत्रा' जयकार, श्रावण वदि तृतीया शशी, सरू भयो अधिकार. १९
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy