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नवेम्बर - २०१४
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अनुसन्धान-६५
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श्रीहलासश्रीजी, श्रीहरकश्रीजी, ठाणा १७ सुविराजमान छै। जोग्य पालीताणासु लिखत हेमचंदारा दादीजी नथमलजीरा भुजीका खमत-खामणा प्रतीकमणो छमछडी कर मास तेर, पक्ष छावीस, दी(दि)न ३९० जो कोई मास तेर, पक्ष छावीस तीन देवसी प्रतीक्रम करके चोरासी लाख जीवाजुणने खमाया है। आपने खमाया है।
और सोमराज गुलेछारी वंदणा त्था खमतखामणा घणे घणे मानसु करके वंचानाजी ।
वालोचरपुरी-श्रीसङ्घनो भगवतीजी-सूत्रांचननी अनुमोदना करवा माटेनो पत्र
प्रस्तुत पत्र सं.१९७९मां वालोचर (बालुचर, बंगाल)पुरीना श्रीसङ्घमां चातुर्मास दरम्यान रतनविजयजी द्वारा व्याख्यानमां भगवतीजी सूत्र वंचायानी जाण माटेनो छे. श्रावक प्रतापसिंहजीनी पुत्रवधूनी भगवतीजी सूत्रनुं श्रवण करवानी इच्छाथी गुरुभगवन्त पासे सांभळवा (व्याख्यानमां वांचवा) ते आगमसूत्र केवा बहुमानभाव साथे लई जवायुं तेनो सुन्दर चितार प्रस्तुत पत्रमा जोवा मळे छे. वळी गर्जारव करता मेघ जेवी (गम्भीर) वाणी द्वारा गुरुभगवन्तना मुखे ज्यारे सूत्र वंचायुं त्यारे शं थयुं ? ते कल्पनानी एक कडी पण अद्भुत छे. 'रजत हेमना' पद्य द्वारा आगमसूत्रनी द्रव्यपूजा अंगे करेली नोंध श्रुतभक्तिनुं सुन्दर उदाहरण छे.
॥ ॐ नत्वा : स्वस्तिश्री गुणयुत सदा, जगपति जिनवरदेव,
चरणकमलयुग तेहना, प्रणमी तज अहमेव, पत्री शुचिअवदातकी, वांचत मिलत आमोद, विधिपूर्वक आगे हिवे, लिखसुं अधिक विनोद.२ पावनदिशि पूरवधरा, देशसकलशिरताज, बंगदेश रलीयामणो, जिहा विचरें जिनराज. ३ ता विच सहरशिरोमणी, श्रीमकसूदावाद, तेहमा वालोचरपुरी, उत्तम अधिक आबाद. ४ जिनधर्मी दृढसमकिती, श्रावककुलशिरदार, सुखी निरंतर जिहां वसै, विनय-विवेकी सार, ५ डूंगरसिंह प्रतापयुत, लछमीपति सुखकार, धनपति अरु छत्रसिंहकी, वारंवार जुहार, ६