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________________ नवेम्बर २०१४ पारस प्रभु नमी प्रेमसुं, धरम तास मन धार, विन्य (ज्ञ) सुगुरुकुं वीनति, आवस्यक तु ( उ ) र धार. १ स्वस्तिश्री सुभ थान जै, जिहां वसै अनगार, वसे धन्य जे लोक, सुणे सिद्धांतविचार. २ तज समान विसेष लही, ए जिन आगमसार, कुल अरु संगत केड हुइ, निरपख लय नय च्यार. ३ श्रावक जन सत धर्मको, उद्यम करे अपार, तत्त्वभेद लहे नवनको दुह पख शदय विचार. ४ स्व पर व्यवसायातमिक, सम्यक ज्ञान प्रमांण, इक ध्ये (द्वे) च षट् अष्ट सत, नवततभेदे सुहेजांण. ५ निज गुणा भुलो परहि-गुण राच रयो हुकाल, ता साधनकी चाह तिह, पावे गुरु परभाव. ६ चेतनता प्रतिपक्ष पुन, जोडी अनादि स्वभाव, पुन्य पाप सुभ यसुभफल, दोहु करतलखाद. ७ आश्रव कारन ताहिको, जांन करै जो रोक, निज साधन कारन ग्रहै, संवरतत्त्वविलोक. ८ पुरब कतहु री करन, तत्त्व निरजरा कन, सत अठ बंधै ते सम्यक्, बंध कर्यो परवीन. ९ पूरण निरजरणे करी, तत्वमोक्ष कहै तेह, पुण्य पाप फल बंधे, कैता ते सप्त कहेव. १० ए नव तत्त्व गुरु पासे ग्रही, अरु साधै इकतान, भेदग्यान साधन भलौ, साधौ ते सिवथांन ११ ए सब गुन गुरुयोगतै, पावै पुन्यपवित्र, ता ते भविजन नित करे, गुरुसेवा इक चित्त. १२ सवावीस गुण शोभता, कहां सोवरण करे [य], हंस नाग मुख सहेसथी, करत न आवे छेय. १३ ३१३ ३१४ सोभे गुणसंहासने, समतारसभंडार, पर परणीत परीहरणकुं, धरे रमण चित्त धाइ (र). १४ मधुर धुनी दै देसना, करवा पर उपगार, संजम निरवान समय, लही निरदोस आहार १५ पाले पंचाचार पुन्य, टाले च्यार कसाय, सत्य पक्ष झाले सही, वारे विषय विचार. १६ संजम दुसण एकविध, दोय राग कहु दूर, तीन तत्व ग्रही केहस्यो, चो कसाय जल पूर. १७ पाले महाव्रत पंचकु, षट काया रिछपाल, तजी सत भय अठ मद हरण, पृहल गुप्ती नव जाल. १८ जतीधर्म [द] सवीध धर्यो, अंग इग्यार प्रवीण, द्वादशविध तप साध करी, तेर काठीया पीण. १९ गुणठाणा चउदै तणौ, अरथ सवे मन लाय पनरवे सुध सिर धात, उपसम सोल कषाय. २० संजम सतरे भेदे ग्रही, सीलंग सहस्रअठार, धोरी छो तिण रथ तणा, धर्म चलावणहार. २१ उगणीस श्याताअंगमांना, धर्मकथा कहनार, वीस गुण असमाधिना, ते सब टालणहार. २२ श्रावक इकवीस गुण, हिवे (दे) रुचावै' तेह, बावीसह परिसह करण, तेवीस विषय तजेह. २३ अनुसन्धान- ६५ रे तीरथपती चोवीसकी, आणा पालणहार, भावे पंचवीस भावना, समर समरण विचार. २४ भेद छवीसे कलपना, जाणे सब व्यापार, आतमतत्व सगवीस गुण, अरथ करै विचार, २५ इत्यादिक गुण करी अतीही सोभीत नीजगुणसाज जे श्री श्री श्री श्री श्री १००८ श्री श्री श्री पूनम श्रीजी महाराज, श्रीरतन श्रीजी, श्रीकनकश्रीजी, श्रीफथे श्रीजी,
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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