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________________ नवेम्बर २०१४ (३१) त्रिकुटनगरमा बिराजमान गणिनयनसुखजीने पत्र पार्श्वनाथ प्रभुने पत्रनी आदिमां नमस्कार करी गणिवर्य नयनसुखजीने प्रस्तुत पत्र त्रिकुट्टनगरमां लखायो छे। पत्र अपूर्ण होवाथी ते क्यांथी लखायो छे ते जाणी शकातुं नथी। पत्रनी भाषा हिन्दी छे। रचनानी दृष्टिए पत्र खूब रसाळ छे । कविनी प्रवाहित शैली पत्रमां स्पष्ट जणाय आवे छे। त्रिकुट्टनगरनी वर्णना पछी त्यांनी प्रजाना स्वभावने कविए सुन्दर रीते आलेख्यो छे । नगरनुं वर्णन त्यार पछीना ३ चोपाइ छन्दमां रजू करी गणपतिना गुणवैभवने कविए चौपाइ अने सोरठ छन्दमां प्ररूप्यो छे। सूर्य अने चन्द्र करतांय गणिवर गुणथी चढियाता छे तेवी कल्पनाने १७ थी ३२ नां पद्योमां वर्णवी अन्य पण उपमा घटावता हशे, पण त्यां ज ३७मा पद्यथी ज पत्र खण्डित थयो छे । ३०७ पत्रनी रचना कोणे करी छे ते अंगे काव्यमां कशी ज नोंध मळती नथी. पण कर्ता गणिवर्य श्रीना शिष्य होय एवं वधु सम्भावित छे. * श्रीजिन- विद्यमाननयणसुखगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीसेतुंजाय नमः ॥ दोहा : स्वस्ति श्री श्रीपासजिण, पय प्रणमउ सुखकंद, लिखउ पत्र गनिराजकउं, जिम पामउं आनंद. १ इस ही जंबूदीपमइ, भरतखेत सुप्रसिद्ध, नगर त्रिकुट्ट तिह सही, वसइ लोक सुसमृद्ध. २ चौपाई : तह पुरि वसै सवै सुरग्याता, लहि विवेक वै सुभमतिराता, तजि कुसंग सुभसंगति करही, पापपंथ छिनु पग न धरही. ३ सुनहि सदा सुभ वेद पुराना, या ते परमार्थ परजाना, पर उपकार करनकडं सूरा, बुद्धिनिधानउ बहुगुनपूरा. ४ देश देशने मग्गन आवहि, जो चितवइ सोई फल पावइ, जिह पीछइ भए जगहत्थदानी, अवस वदीसै परम विनानी. ५ ३०८ दोहा : जिहि पुरि जैसे जन वसै, दान मांनसु विख्यात, धर्मरूप भगवंतको, भजन करई दिन राति ६ अनुसन्धान- ६५ चौपाई : हिव पुरकी छवि पिखियत एसी, ज (ध) नकुबेरकी अलका तइसी, जाकर भवन अतहि उजीयारे, गचकलित ललित चठवारे. ७ जिह महि वसहि रसहि वर कामनि, घनघन मोकौं धहि जनु दामिनी, भरत संगीत नृत्य विधे भारे, पिखियत सुंदर कहू अखारे. ८ जाकै निकटि गंगकी वहनी नदी सतलुद्ध कोटि अघदहनी, नर नारी तह मज्जन करही, केलिकलाप ताप सब हरही. ९ सोरठो ऐसो नगर अनूप, जाकी उपम न कर कुइ, : वसै जहां जनभूप, कहलउ तसु छबि वर्णीइये. १० चौपाई : एैसो नगर जानि सुखरासा, तह कीना गणिपति चडमासा, आसा सब जीवनकी पूरन, नाम लेइ अघ हुइ हइ चूरन ११ कर्मपंध जिनि सकल विदारे, जिन ते जीव लहत दुख भारे, ज्ञानवंतऊ महंत मुनीसर, कामदहनकों दूजो जनु ईसर. १२ विषयविकार टारि सुख पायो, जाको नाम जगति बहु गायो, मोहसैनि जिनि सकल निवारी, दुखभंजन रंजन उपगारी. १३ सोरठो : चितु लायो सुभ ध्यानि, ज्ञानवंत सुमहंत, अति मोकौ दीजइ दान, कृपा आपनी देवजी. १४ चौपाई : कृपानिधान नाम हइ तेरो, जाक रहै सब जग यह चेरो, दयाधर्म बहु प्रतिपालै, जिनवरको मार्ग सदा निहालै १५ लब्धिवंततरु हइ बडभागी, गनधर गोतम सम वैरागी, बालवैस जिनि संयम लीनो, याते मनु जिनमग-रंगभीनो. १६ दोहा : धर्मध्यानि मनु लायकै अघ कीने सब मंद, ताते उपमा देत है, कोविद कवि जिस चंद. १७ चौपाई : दोखाकर उह नाम भणीजइ, ओर कलंकी सदा गणीजइ, मित्रपति जड उदइ धरेइ, अरु कुवलैवनकउं दुख देई. १८
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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