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________________ नवेम्बर - २०१४ ३०९ अनुसन्धान-६५ --- २४ खीरसमुद्रनंदन उह कहीयइ, याते विरहनको तनु दहीयइ, हालाहलको बंधव सोई, ताते मरत वियोगी जोई. १९ दिनि पिखियत पात पलासा, रयनि अमावसि रहत न मासा, राहु ग्रसत नितु प्रति छवि वाकी, ताते उपमा न लहइ हु याकी. २० दोहा : इते अवगुन जास् तनि, सो कहियत कविचंद, ताकी उपमा किउं न लहइ, इहु मुनिवर कवि मंद. २१ चौपाई : इहु मुनिवर सव दोष निवारै, नि:कलंक अघ अंक उतारे, निज मित्रनकउं हइ सुखदाता, देइ कुवलैवनको सुखसाता. २२ ब्रह्मवंस उत्तिम जगि भणीयइ, यांकी उतपति तामै गणीयै विषै विषम विष नाश करेइ, याते निज सेवक सुख देई. २३ जाकी जोति रयनि दिनि सूची, याते हइ पदवी इस ऊची, कुमति राहु नहि आवइ नेरइ . --- दोहा : जिहि सरीरि ए गुन रहै, तिह सरक उकति चंद, __ताते उपमा भानुकी, कहत जासु कविंद. २५ चौपाई : सूर्य दाघ तापकौ करता, अरु कुमदिनिके सव सुखकों हर्ता, कश्यपपिता जास कर कहीयइ, जाक उपंग सारथी सहीयइ. २६ सूर्यजोति घटइ सव तनकी, जव ही आइ फिरै छवि घनकी, रयनि आइ जव जगमइ प्रगटइ, तव रविजोति न कहूयै मटकइ. २७ जगमै सीतमास जव आवै, तव वह तेज रहन नहि पावै, जगत प्रगास करनकउ सूरा, तउ पणि उपम लहै नहि सूरा. २८ दोहा : सूरज उपमा न पावई, इते अवगुण जाणि, कहु कविजन किठं दीजीयइ, इहु मुनिवर गुणखाणि. २९ चौपाई : पहु भव-तपति-हरन हइ स्वामी, तृष्णादाघहरन सिवकामी, कुमदनिखिमा-उदयको कारन, कल्याणमल्लवंस उद्धारण. ३० धर्मसारथी जाकर जाणउ, करत विहार सदा मनि भाणउ, वादीमेघ जिम मिलि गरजइ, तउ पणि याकी जोति न लइजइ. ३१ रयनि दिवसि प्रभु एकहि सरीखा, ज्ञानप्रकास सदा यह परिखा, कुमतिसीततेजें नर कांपई, तिनको अचल अमरपद थापइ. ३२ सोरठो : एसो है मुनिसूर सूर, जासं सम सरि नही, ताकी उपमा कूर, कवियण देत मुनिंदको. ३३ चौपई : इक चिंतामणिअ कइ कुबेरा, कइ कल्पद्रुम कइ घनघेरा, कामधेन पय रतनागर, इन हूंतइ तइ आगर है वैराग. ३४ रामदास-कलि कलस विराजइ. जाकी उपम उर नहि छाजै. मांथै हाथ दीयो हंसराजस्वामि, नवनिध लहीयइ जाकै नामि. ३५ मुख देखते आनंद लहीयइ, ताते श्रीनयनसुखजी कहियइ, चितामणि मुख जे उपगारी, याकी सरानि देखु निहारी. ३६ दोहा : मन की तृष्णा सब हरइ, दुख दारिद्र हुइ चूर, कहलउ ताकों वणीयइ, हइव..... [अहींथी स्क्रोलमानो १ टुकडो घटे छे । पछी पाछळनी बाजुनो लेख-] ....रीव०८ कउला ७०८ खिमो व्र०८ धर्मका उद्योत बहुत भया तव प्रसा[दा]त् । प्रभुजी हम्हारी त्रिकाल वंदना, खिमावणा पखी, अष्टमी राइदिवसाकी, चउमासीकी, छमछरीकी वाचणी १०००००००००८ घडी २ पल २, भुजो २ हम्हि तुम्हारे चरणकमलोंकै प्रसादि बहुत सुखी है सही। भगवंत तुम्हारी चिरजीव करो कोटिपर्यंत तुम्हि हम्हारे छत्रपति हहु । तुम्ह हम्हारे जिनदेव सम तुल्लि हहु । हम्हकों आशा इन्ह चरणकमलोंका ही है। सही अत्रकी समिग्रहाकी वंदना वाचणी, बाल गोपालाकी वंदना वाचणी । तत्र समिग्रहा योग्य धर्मध्यान कहणा नाम लेई लेई सही मिती भाद्रो शुदि १० २४ पत्री श्रीश्रीश्रीश्रीपूज्यआचार्ययोग्यदेवणी सही
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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