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________________ नवेम्बर - २०१४ ३०५ ०६ अनुसन्धान-६५ दाणा-पांणीको जोर हैं, मुखसें कयो न जाय, दैवगती के भावसुं, जोरें मीलेसुं आय. २० पत्र तुमारा तीन जे, आय पहोच्या हम पास, पूनः पत्र लखी भेजज्यो, बहूलों प्रेम नीवास. ग्रहे (ह)वेंदे(द)सी(सि) द्धीचंद्र थी, भाद्रव सुकलेआस, तेरे(रसें) मंगलवास(र)में, करज्यो लीलविलास, २२ श्रेयोस्तुः ॥श्रीः ॥ ॥ पूज्याः ॥ सकलसजनोत्तमशिरोरत्नायमान । पोलीई उपाश्रे। आराध्य पं० रत्नविजयगणि । पत्र १ श्रीपट्ट(त्त)न्(न) नयरे ठावो (?) पोहचे ॥ दरीसण कीजे देवर्नु, याद करीजे मीत, वीनय करीने वंदता, जे-जेकारी नीत. आद अक्षरथी जाणज्यो, ए हमचो सुख-चैन, इष्टकृपाथी नितु रहें, आनंदित जिउ नैन. तुम सुखपत्र आव्ये थकें, उपनो मन अल्हाद, पूनः पत्र देवा भणी, लखज्यो करीने याद. लखवा कारण एह छे, प्रीछज्यो सुगुणं निधान, समाचार अधीके सदा, केहज्यो वधते वांन. नित्यानंद होस् घणो, फत्ते सदा जयसिह, वंदना कहीओ प्रेमसुं, सतअठे निसदीह. इष्टदेवस्मरण सदा, पूजा-भक्ति विशेष, दीप-धूप-फल-फूलनी, सावधांनी हंमेस.. चतुर सनेही गुंणभयों, राम नाम सुखवास, आदे कहिओ प्रेमसुं, कुसल-खेम उल्लास. नयणा आडा डुंगरा, मन आईं नही कोय, सजन तणो मेलावडो, पुन्य विना नवि होय. सजन यूं मत जांनीयो, विछुरे प्रीत घटाय, बीमणो वाधे सजनो, ओछो होय पलाय. कागद को लिखवो किसो, कागद लोकाचार, जे(ते) दीन सफलो जानसुं, मीलसुं बांहि पसार. १८ सुगुंण सनेही मीत्त छो, गुंणसायर गुंणजांण, प्रांण सदा तुममें रहें, केते करुं वखांण. अपरं लख्या कारण ए छे जे भाइजीथी अंतरभाव थयो छे.
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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