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नवेम्बर २०१४
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श्रीपरमानंदजी, महर्षि श्रीजुहारमलजी म. श्रीहुकमचंदजी, म. श्रीशिवदासजी, म. श्रीसिरदारमलजी म. श्रीभागचंदजी, म. श्रीलालचंदजी, म. श्रीलूणकरणजी, म. श्री रायभांणजी, म. श्री सुमेरमलजी म. श्रीहिंदूमलजी म. श्रीसंतोषचंदजी, म. धरमचंदजी, म. श्रीटीकमचंदजी, म. श्रीसुजांणमल्लजी, म. श्रीआईदानजी, प्रमुख समस्त साधुमंडलीन् अत्र अजमेरथी लिखतं सदा सेवक, आग्याकारी, हुकमी, पायरजसमांन, ऋ. छोरू संभूरामकी द्वादशावर्त वंदनां दिन प्रतै १०८ वार त्रिकाल अवधारसीजी घणै घणै मान । अत्र आपारी कृपा सेती सुखसाता
। तत्र आपनै सदैव आनंद चाहीजै। आप मोटा छो, गुरुदेव छो, तीर्थ समान छो। आप सवाय काइ वार्त्ता नही है। छोरू ऊपर कृपा सुदृष्ट पूर्वं रखावता छी तिण प्रमाण ही ज रखावसीजी तथा पर्जूसणां पर्व आपरा प्रसादथी निर्विघ्नपणे थया छै। संवत्सरी प्रतिक्रमणावसरे देवसी, राई, पक्षी, [चोमासी], संवत्सरी संबंधी खिमतखामणां मन-प्राणां शुद्ध षमाया छै ते जांणसी । तथा अजमेरना बृहन्नागोरी लूंकेगच्छना समस्त श्रीसंघ बाल - गोपाल लघु वृद्ध श्रावक श्रावकिणियां बंदणा बीनवी छै घण घणै मांन। समस्त श्रीसंघनै आपका दरसणी घणी उत्कंठा लाग रही है सु कृपा करकै दरसण दिरावसी । सं० १८८७ म० सु० १५ ॥
श्री श्री १०८ श्रीजी साहब सुराणा जीवणमलह, जीरीमल, राजमल प्रमुख समसतरी वंदना १०८ वार वंचावसी । कीरपा कर दरसण देरावसी ।
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अमदावाद विराजमान श्रीकल्याणसागरसूरिजीने चौरंगाबाद श्रीलतो पत्र
अनुसन्धान- ६५
प्रस्तुत पत्र नौरंगाबादथी श्रीस अमदावादस्थ कल्याणसागरसूरिजीने उद्देशीने लख्यो छे. अन्त्य भागमां पत्र कईक अपूर्ण छे. शरुआतमां संस्कृत २ काव्यमा आदिजिन तथा शान्तिजिनने नमस्कार करी सौ प्रथम गुर्जर पद्योमां अन्यत्रण तीर्थङ्करो तेमज गौतमादि गुरुभगवन्तोनी स्तुति करी छे. प्रथम ढाळथी नौरंगाबादनं, त्यार बाद अमदावादनुं अने त्यांना श्रावकोनुं अने गुरुना ३६ गुणोनुं वर्णन कविए कर्तुं छे. त्रीजी ढाळमां फरी गुरुगुणवर्णना छे. त्यार पछीनां पद्य मां सूरिजीनी पधरामणीनी राह जोता श्रावकवर्गना नामोल्लेख साथे गुरुपरिवारने वन्दना करवापूर्वक चातुर्मासनी विनन्ती करे छे. त्यार पछी महाराष्ट्री (मराठी) भाषामां पार्श्वनाथ प्रभुनी स्तवना करी पत्रान्ते पत्रलेखन अंगेनी नोंध आपी पत्रमा लेखनमां थयेल भूल-चूक माटे 'मिच्छामि दुक्कडं' याचे छे [अहीं हवे २ श्लोको पछी पत्र खण्डित छे.]
॥ ६० ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥
काव्य : स्वस्ति श्रीआदिनाथं सकलसुखकरं सौख्यदं प्राणभाजां सौवर्णाभं जिनेशं परमजयकरं यः स्तुतो दानवेन्द्रैः । तं नत्वा देवदेवं परमपदगतं सर्वकार्येकसिद्धं, उद्यत्कल्याणमाला कलिमलहरणं श्रीगुरुं संस्तवे (वी) मि ॥१॥ स्वस्तिश्री (वि) यं वो विदधातु शम्भु-रष्टाननः षोडशनेत्रयुक्तः । श्री अश्वसेनान्वयचित्रभानुः पदारविन्दं प्रणतोऽस्मि भक्त्या ॥२॥ अथ देशीबद्ध - श्रीसचित्रलेख: लिख्यते ।
दूहा : स्वस्ति श्रीमद् वृषभजिन, प्रेम प्रणमी पाय,
लेख लखुं श्रीगुरु प्रतई, कीजई मुझ सुपसाय. १ स्वस्तिश्री श्रीशांतिजिन, प्रणमुं बिहुं कर जोडि, लेखु लखुं श्रीसूरिनई, पूरो मुझ मन कोडि. २