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________________ नवेम्बर - २०१४ २७५ २७६ अनुसन्धान-६५ स्वस्तिश्री बावीसमां, प्रण, नेमिजिणंद, समुद्रविजयराय कुलतिलो, मातशिवादेवीनंद. ३ स्वस्तिश्री प्रेमई करी, प्रणमीजई श्रीपास, दास आस पूरो सदा, जिम लहीइं उल्लास. ४ स्वस्तिश्री चढती कला, नाम थकी वर्धमान, सिद्धि बुद्धि दिन दिन वधई, नितु आदर नितु मांन. ५ श्रीगौतम आदि करी, प्रणमी सहु गणधार, लब्धिनिधान नामइ करी, जय लहीई संसार. ६ श्रीसुधर्मगणधर प्रतई, वांदी त्रिकरण शुद्धि, गुरुगुण गातां कवि प्रति, दीजई बहुली बुद्धि. ७ तंबू धर्मसुसार्थनो, कंबू दख्याणावत्त, अंबू परि निरमल करई, जंबूस्वामि पवित्त. ८ श्रीप्रभवप्रमुख पटधर घणां, ते प्रणमुं सहु सूरि, सिज्जंभव यशोभद्र मुख, यावत् लक्ष्मीसागरसूरि. ९ वीर तणा सवि पटोधरु, प्रण, थई लयलीन, नाममंत्र मुख राखतां, होवई तन-मन पीन. १० ए सरवें प्रणमन करी, समरी सरसतिदेव, मुझ मनि नितु ए टेव ,, तिणे समरूं नितमेव. ११ गुणगिरुआ जे अह्म गुरु, ते गुरु प्रणमुं आज, पत्थरनें पल्लव करें, ते गुरु गरीबनिवाज. १२ समर्या मुझ सानिधि करें, प्रेमपात्र गुरुगात्र, भवजल तरणतारण भणी, सफरी यांनह पात्र. १३ ए सहुकोनई चित्त करी, सिर धरी एहनी आंण, वर्तमानगुरु गछधणी, कीजई तास वखांण. १४ सकलदेशकल्याणकर, सकलनगरकल्याण, कल्याणसागरगुरु गछधणी, नांमई सदा कल्याण. १५ ॥ ढाल ॥ चतुर सनेही मोहना - ए देशी ॥ जंबूद्वीपना भरथमां, दक्षिणदेश छे वारु रे, अवर देश जोतां थकां, एह देश दीदारु रे. १ जंबूद्वीपना..... एह देशनुं बेसणुं, नगर नोरंगाबाद रे, नित्योच्छवमय नगर ए, दीठे मनि आह्लाद रे. २ जंबूद्वीपना..... गढ़ मढ़ मंदिर विपणनी, सोभा बहुली दीपई रे, चोरासी चहुटई करी, स्वर्गपुरीनई जीपई रे. ३ जंबूद्वीपना..... जैनभुवन अति दीपतां, जैन देव तिहां बइठा रे, त्रिकरण शुद्धि सेवतां, मुझ मनि लागई मीठा रे. ४ जंबूद्वीपना..... पूजा त्रिविध प्रकारनी, नित्य करई भवि प्रांणी रे, भवजलतरणतारण भणी, प्रभु सेवई उलट आंणी रे. ५ जंबूद्वीपना..... इंम घणी धर्मउन्नति करई, जैनधर्मना आसी रे, वर्ण अढार वसई सुखी, एह नगरना वासी रे. ६ जंबूद्वीपना..... सकलदेश शिरोमणी, सकलनगर सिणगार रे, नगर नौरंगाबादथी, संघ लिखितं सुखकार रे. ७ जंबूद्वीपना..... दूहा : लिखितं नौरंगाबादथी, योग्य अमदावाद, श्रीपूज्यजी विचरें जिहां, तिहां कुशल-खेम आबाद. १ ॥ ढाल || बि मुनिवर विहरण पांगर्याजी - ए देशी छई। गौर्जरदेशई नगरसिरोमणी जी, राजई विराजई राजहद्रंग रे, तेह नगरनी सोभा सी कहुं जी, कहतां निरवहां उपजई रंग रे. १ गौर्जरदेश.... सज्जनलोक वसें जेहमां घणा जी, पोहचाडई निज मनडानी मोज रे, दीन दुखीआ दीसई को नही जी, दांनई निज वांनइ दीपई हरोज रे. २ सुधा व्रतधारी गुणकारी सदा जी, नितु नितु पूजई श्रीजिनदेव रे, भावभगतिनी अधिकी अधिकता जी, सहगुरुमुख जोवई नितमेव रे. ३ धन्य ते नगर सहर पुर पट्टण भला जी, धन धन्य पावन पुढवी तेह रे, जेह नगरीइं सहगुरु विचरता जी, वरसता निज वांणी अमृतमेह रे. ४
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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