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________________ नवेम्बर - २०१४ २७१ २७२ अनुसन्धान-६५ गाङ्गेयाभमशेषिक एव शिखरी व्याधाम साधारणं, श्रीशेत्रुञ्जयभूधरे तमधिकं वन्दे जिनं चाऽऽदिमम् ॥१॥ येनाकारि निजौजसाऽऽदिगहनं स्याद वाषिकं वै तपः, सान्द्रा भिल्ल(?) निदा(दा)नकर्मनिचयाच्छिन्नेऽनिशं तत्परम् । तं नत्वा जिननाथमेव शिरसा भक्त्या त्रिशुद्धया यथा, श्रीमत्पार्वणि एष एव मयका लेखोऽधुना लिख्यते ॥२॥ श्रीमत् विक्रमपुरवरे सर्वेऽपि उत्कृष्ट श्रेष्ठोपमा बिराजमानानाम् । जितेन्द्रिया ब्रह्मव्रतो(ते) सुरक्ताः, क्रोधादिमुक्ता यमपञ्चयुक्ताः । आचारशुद्धा सुमतिप्रशस्ता-स्त्रिगुप्तिगुप्ता गणिनो भवन्ति ॥३॥ कवित्त : पंडित प्रवीण सब आगमकुं साध लिये, करत बखांण बाण गौतम समान जू, भविजन भेटै पाय ताको दुख दूर कर, दीपत दीदार एसो जैसो तेजभान जू, लूकैगछ नागोरी सोभत सुभ थाट लियां हर्षचंद हंदै पाट मांनै राजान जू, पंच ब्रत्त पालै निज आत्म-काज सारै लक्ष्मीचंद गणराज गुणको निधान जू. १ सवियो: लक्ष्मीचंद मुनिंद तपै रवि, देख दीदार तैं आनंद थावै, भेटत पाय भविजन भावसुं, दुकृतं ही सब दूर ही जावै, सूत्रसिद्धांतसमुद्रज्युं गाजत, ग्यांनमहातम शुद्ध बतावै, सुरतरु सो जस छाय रह्यो, जगरांम सुखो मनवंछित पावै, १ दूहो : दीपै तेज रवि जिम दुरस', जैसै ग्यांनकै सूर, लक्ष्मीचंद्रजी पूजि]जी, नायक चढतै नूर. १ कुंडलिया : बिद्या-वयर कुबेर ज्यूं, इल गोयमअवतार, लायकगुण लीलालहर, कलियुगमै करतार. १ कलियुगमै करतार धीर, संयम-व्रतधारी, गाहीड गात गयंद, इंद्रज्यूं 'इधकै दावै, साध्र महियडै साच, सकल श्रम[ण]गुण हितकारी, पंडित सुगुण बुधपात्र, जस कविजन गुण गावै, वड त्याग भाग सोभाग वड, धरणी तरणी शशि धीर ज्यूं, प्रतपो लक्ष्मीचंद्रजी पाट, विद्या-वयर कुबेर ज्यूं. २ गछपति गछपतिसिरतिलक, चलै चरण सुध राहं, मिथ्यामल दूरे हरै, परतिख-गंगप्रवाह. १ परतिख गंगप्रवाह, गहर' वांणी घन गाजै, गजित महिमा गुहिर, भेटतां दालिद्र भाजे, गुणमणि-रयणभंडार, ज्ञान-दरशण-चारित्रनिधि, अमल अटल अणभंग, अखिल वंछितदायक रिधि, करुणानिधान करुणाकरण, अति प्रताप उदियो अरक, कवि कहत एम गोयम सुगुण, [गछ] पति गछपतिसिरतिलक. २ कवित्त : 'ठोर ठोर थिर थान, सकल जग जासु सराहै, महिमावंत महंत, चरण-परसिद्धसु चाहै, छत्रपतियां छो रिछपाल, 'लुलित करि पावां लागै, कीरत सुणी कहंत, राजवी बंदै रागै, तपतेजहेज विद्याअतुल, ईढ न को आवे अवर, श्रीहर्षचंद्रपाटे रिधु, लक्ष्मीचंद वरीसवर. १ नगर घणांई देशमै, इक ईकथी सार, पिण अजमेर पेखतां, ओर न आवै दाय. १ पूज्याराध्यत्तमोत्तमा, श्रीजीना सुखकार, समाचार श्रीसंघने, दीजे हित धर प्यार. २ किहां कोयल किहां अंबवन, किहां ददुर किहां मेह, बीसर्या नवि बीसरां, पूजजी तणां सनेह. ३ इत्यादि अनेक सकल श्रेष्ठोपमा बिराजमान पूज्य, परमपूज्योत्तमोत्तम, कलिकालगौतमावतार, सरस्वतीकंठाभरण, वादविजयलक्ष्मीसरण, अबोधजीवप्रतिबोधक, दयाधर्म दीपावक, हिंस्याधर्म उत्थापक, पांचे सुमते सुमता, त्रिहुं गुपते गुप्ता, छ कायना पीहर, यावत् षट्त्रिंसद्गुणे करी बिराजमान, पूज्य श्री... श्रीलक्ष्मीचंदजिच्चरणान्, महर्षि रांमधनजी, महर्षि उमेदमलजी, महर्षि
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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