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नवेम्बर - २०१४
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अधिक उदय थास्यै श्रीसंघ, तुम आवैथी रंग उमंग, श्रीगुरु..... नमीय नमी इम वार हजार, श्रावक श्राविका सवि निरधार. ५ श्रीगुरु..... वीनती विनय करी सुजगीस, तुम्हनें भाखें छै निसदीस, श्रीगुरु..... गुणरयणायर महिमा महंत, सुखकारी सज्जनमा संत. ६ श्रीगुरु..... परउपगारी परमकृपाल, अंगीकृत-कृतना प्रतिपाल, श्रीगुरु..... चिर प्रतपो ए श्रीगुरुराय, शिष्य खुस्यालमुनिना सिरताज. ७ श्रीगुरु.....
॥ इति विनतीभास समाप्तः ॥ बाई मीठी तत्पुत्री सत्पुत्री बाई नाथी पठनार्थं ॥
अनुसन्धान-६५ (२६) अजमेरना श्रीसङ्घनो विक्रमपुर लक्ष्मीचन्दसूरिजीने पत्र ____ नागोरी लुकागच्छीय हर्षचन्द्रसूरिशिष्य लक्ष्मीचन्द्रसूरिजीने उद्देशीने अजमेरना श्रीसङ्के विक्रमपुर प्रस्तुत पत्र पाठव्यो छे. शरुआतना प्रथम पद्यमां आदिजिननी स्तुति, बीजा पद्यमा लेखनी सामान्य विगत तेमज त्रीजा पद्यमां मुनिगुणवर्णना करी कृतिनुं मङ्गलाचरण कयुं छे. त्यार पछी पत्रमा अनुक्रमे कवित्त, सवैयो, दूहो, २ कुण्डलिया, तथा कवित्त द्वारा लक्ष्मीचन्द्रसूरिजीना गुणवैभवनुं वर्णन करायुं छे. 'नगर घणा' पद्यथी अजमेरनी महत्ता तेमज पछीनां २ पद्योथी सूरिदर्शनोत्कण्ठानुं आलेखन कविए रजू कयुं छे, पत्रमा अन्य विज्ञप्तिपत्रोनी जेम मुनिश्रीना सामान्य गुणोनी नोंध पछी आलेखायेला साधुसमुदायनां नामो महत्त्वपूर्ण छे. ते सिवाय गुरुभगवन्त प्रत्ये श्रीसङ्घना आदरनी तथा पर्वाधिराजपर्वनी क्षमापना अंगेनी विगत पण वांचवा योग्य छे. पत्रान्ते पत्रलेखन संवत् तेमज मुडीया लिपीमां श्रीसङ्घना केटलाक श्रावकोनी सही छे.
कृतिनी रचना कोणे करी छे ते ख्याल नथी आवतो. परंतु आमांनां केटलांक पद्यो अन्य विज्ञप्तिपत्रमा थोडा घणा फेर साथे जोवा मळूयां छे. बीजुं सवैयानी रचना कदाच जगरांम सुखा नामना श्रावकनी होय तो एमणे ज पत्र लखवामां मदद करी होय एम पण मानी शकाय, पत्र सचित्र छे.
शब्दार्थ
१. दुरस = दुरस्त(?), व्याजबी २. गाहीड = ? ३. इधकै = अधिके ४. गहर = गम्भीर ५. गुहिर = गम्भीर
६. ठोर = स्थान ७. सराहै = प्रशंसे ८. लुलित = लळी लळी ९. ईढ(8) = ऋद्धि १०. वरीसवर = वर्षों सुधी
स्वस्तिश्रीसमुरीकृतोद्यतिसुता दी... मुंदा य[:] स्तुतः, सौवर्णाञ्चितगद्यपद्यरचनैः स्तोत्रैः प्रगीतो यकः ।