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________________ नवेम्बर - २०१४ २६३ २६४ अनुसन्धान-६५ (२४) मेडताथी श्रीसङ्घनो श्रीदेवगुप्तसूरिजीने पत्र प्रस्तुत विज्ञप्तिपत्र प्रायः 'कवला'गच्छनी परम्परामां लखायेल सचित्र विज्ञप्तिपत्र छ, सं.१९०७मां मेडता श्रीसङ्घना धनरूपमल वगेरे श्रावकोए श्रीदेवगुप्तसूरिजीने उद्देशीने आ पत्र लख्यो छे. पत्रमा लखाण ओछु छे. आगळना अडधा पत्रमा गुरुभगवन्तनां विशेषणो मारुगुर्जर भाषामा रजू कराया छे. त्यारबादना लखाणमां गुरुभगवन्तनां नामो, तेमज गच्छना श्रावकोनां नामो विशेष उल्लेखनीय छे. साथे पूज्य गुरुभगवन्तने उद्देशीने लखायेला गुर्जर पद्यो भाषाकीय दृष्टिए रसाळ छे. छेल्ले पत्रना अन्त्यभागमा पूज्यश्रीने नम्रतापूर्वक प्रत्युत्तर पाठववा विनन्ती करी छे. पत्र पूर्ण थतां नीचे श्रावकोनी सही छे. वो० अमरसी, वो० त्रीकम, वो. जेठा, वो. प्राग, वो. भगा, वो० नरसिंघ, वो० मूलजी प्रमुख श्री० वाहालबाई, श्री अगरबाई, सा० राधा प्रमुख तथा विंशतिमध्ये वो० श्रीदेवचंद, सेठ श्रीवीरा, सा० श्रीरूपा, सा० श्रीसकल, सा० श्रीलखडा, सा० श्रीकमल, श्री डाहा गांधी रहीया, सा० श्रीकल्याणजी भातीया, सा० भीमजी वछराज प्रमुख समस्त संघ नाहना-मोटानी वंदना अवधारज्योजी । अम्हारी वंदना दिनप्रति अवधारवी। अपरं पं० श्रीजिनविजय, पं० कल्याणरत्न, पं० अमरविजयादि. अह्मारी तथा परिवारनी यथायोग्य नत्यनुनति जाणवी। अपरं श्रीजीनें वांदवानो अभिलाष घणो रहि छि। वांद्यां दिन घणां थया पण हवि तो योग मिलवो भावी हस्ये तिवारै वंदास्यि । दोहरा : ज्यौं घनबुबुंद बपीयरा, ज्यौं कोकिला बसंत, त्यौं तुम देखन उंमहे, हम लोचन तरसंत. १ नैंन हमारे अलजये, देखन तुम देदार, ग्रीषम पंथी प्यास वसि, ज्यौं चाहँ जलधार. २ हम मन निसदिनि तुम चरनि, धरत सदा अभिलाष, श्रीजी साचा मानीयो, चंदा सूरज साखि.३ श्रवण सदा तुम गुन सुनें, हिरदामैं तुम बैंन, जीहा गुन सुमिरन करें, देखन तलफै नैंन. ४ भ-यके भीतर निति रहैं, ध-प बिचि जाको वास, सांई साचा जानीयो, सोई तुमारे पासि.५ [मन] अपरं - जेहवो कृपास्नेह राखो छो तेहथी विशेष राखवोजी। पत्रसमाचार वलता विशद करी लिखवाजी । तत्र हाजर मजलशि. धर्मलाभ कहिज्यो । लेख उतावलो लिख्यो छि। सा० वस्तो मुखवचन कहि ते सही करी मांनज्योजी। संवत् सत्तरबांनवइ (१७९२), उज्जल भाद्रव मास, दशमी दिनँ वासर शनी, लिख्यो लेख उल्लासि. १ श्रीमंगलमालिकाः ॥ ॥०॥ स्वस्ति श्रीपार्श्वजिनं प्रणम्य । श्री तत्र ग्राम-नगर-सुभ सथाने सरबओपमाविराजमान, अनेकओपमालायक, सरबगुणनिधान, सत्कियासावधान, पांचे सुमते सुमतां, तिनें गुपते गुपता, छकायरा पीहर, सात भय जीपक, आठ कर्मना टालक, नव वाड ब्रह्मचर्यना पालक, दशविध जतिधर्मना धारक, इग्यारै अंगना जाणनहार, बारै उपांगना प्ररूपणहार, तेरै काठियाना जीतणहार, चउदें विद्यानिधान, पन्नरै भेद सिद्धना जांणनहार, सोलै कषायना जीतणहार, सतरै भेदै संजमना जाणनहार, अढार सहस्र सीलांगरथना धारक, उगणीस दोसना टालक, वीस असमाधिना टालक, इकवीस श्रावकना गुण जाण, बावीस परिसहना जीतणवाला, तेवीस विषयरासि जीपक, चोवीस भगवानरी आज्ञारा आराधक, पंचवीस भावनारा जांणनवाला, क्रोध-मान-माया-लोभ-मद-मच्छरअहंकार इणारा जीतणहार, छतीस उत्तराध्ययनना वखांणना करणहार, नंदीसूत्रदशवीकालिक-अनुयोगद्वार-सूगडांग-ठाणांग-जीवाभिगम ईयां सूत्रारां प्ररूपणहार, नवतत्त्वना जाणणहार, जीवदयाप्रतिपालिक, षट्कायरक्षक, दुविध धर्मप्ररूपक, श्रीआचार्यप्रतिगुणसंयुक्त, श्रीआचार्यसूर्यावितेजस्वीगुणसंयुक्त, युगप्रधानागमगुणसंयुक्त, मधुरवाक्यगुणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी श्रीउपदेशगुणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी अपरश्रावीगुणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी सोम्यप्रकृतिगुणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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