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________________ नवेम्बर - २०१४ २६१ २६२ अनुसन्धान-६५ श्रीगुरु वंदो गुणभंडार, रत्नत्रयसंपत्त उदार, श्रीतपगण केरो शृंगार, रजोरहित शुद्धआचार; दानरत्नसूरी शुभ नाम, महिमा तेहनो जगि उद्दाम, दायक बोधिबीज अभिराम, मन एकाग्रि करो प्रणाम. २७ सरावसंपूटबन्धः । चतुष्पदी छन्दः। अइसैं ही सर्वोपमा-योग्य परमगुंनधाम, तपगन गगन उद्योत रवि, सुगृहीत निति नाम. २८ सकलभट्टारक-सीसमनि, परमपुनित सुपूज्य, सोभित सप्त श्रीकारसौं, श्रीनिवास श्रीपूज्य. २९ दानरत्नसूरिवर जयो, जगि प्रतपो चिरकाल, सोमें सकल सुशिष्यसौं, महिमसमुद्र दयाल. ३० अथ संस्कृतं गद्यम् - एवमनेक-छेक-सुविवेकीजन-विरचित-विविधगद्य-पद्यादि-रचनाचित्रपवित्रस्तुतिस्तुतेषु तेषु सपरिकरेषु विज्ञप्तिपत्रं ममात्र प्रश्रयरसवशतो मीयाग्रामात् द्वादशावर्तवन्दनपूर्वकमिलातलमिलन्मौलि: उ० उदयरत्नः, पं. हंसरल-जिनरत्नविवेकरल-शङ्करादियुतो, विधेयमथ निवेद्यते । दोहरा : अत्र कुशल संपद वधैं, श्रीगुरुकृपाप्रसादि, तहां कुशलता चाहीयें, छिनु छिनु मन आह्लादि. ३१ अन्यच्च : पत्र तुमारो बांचिकैं, तनु उलस्यो सब ओर, ज्यौं घनगरजारव सुनत, मनहु उंमग्में मोर. ३२ और इहां चोमासमैं, बिधि बिधि धर्मध्यांन, दान शील तप भावना, श्रीजिनेश गुणगान. ३३ नाना सुकृत समूह निति, सकल संघ सुभ भाउ, आराधति अहनिसि सुपरि, दिन दिन चडतै चाउं'. ३४ सुप्रभाति श्रीभगवती-सूत्र करत सज्झाय, श्रावक गुणसंग्रह सुधा, सुनत बखांन सुभाउ. ३५ यह विधि बहु ओछरंगसौं, करत सुकृतगण सर्व, सकलपर्वसिर मुगटमनि, आए पजूसणपर्व. ३६ अभयदान सब जंतूकौं, बाज्यो पडह अमारि, तब महा मंगल नगरमैं, मच्यो सुहर्ष अपारि. ३७ नर नारी अति नेहसौं, सजे सकल सिणगार, थोक थोक भवि लोक सवि, आवै देउलद्वारि. ३८ स्नात्रपूजा आंगी रचें, धूप दीप नैवेद, होडाहोडी सब करें, जिनपूजा बहुभेद. ३९ सोहासनि सिनगार सजि, करि विसाल धरि थाल, गुरु आगें करि गूंहली, गावँ मंगलमाल. ४० बिधि बिधि वाणित्र वाजतें, गंधर्व करतें गांन, परमप्रमोद बढावते, उछव अति असमान. ४१ पोसह पडिकमणा प्रमुख, ध्यावत ही सुभ ध्यान, सदगुरु-साधमिकभगति, पात्रदान सनमान. ४२ श्रीकल्पश्रुत वाचना, नवेयु सुखसमाधि, संघसमक्ष सुभ परि भई, श्रीगुरुदेवप्रसादि. ४३ तप जप व्रत पचखाण बहु, संघपूजा गुरुभक्ति, पूजा चैत्यप्रपाटिका, प्रभावनादिकयुक्ति. ४४ इह बिधि नाना भांतिके, सुकृतसमूह समेत, पर्व आराध्यो प्रेमसौं, अहनिसि आदरि हेत. ४५ अपरं तुहमारी कृपादृष्टिथी समय माफक अत्र पर्वृषणापर्व सारां थयां छै। पारणां ४ सकुटंबि वृद्ध साजनि, पारणां ४ सकुटंबि लघु साजनि तथा प्रभावना ५ मोदक लहिणी ३।४ थई छि। तप मासखमण ३, पासखमण २, अठाही २, पंचोपवास ५, छठ-अठमादि घणा थया हैं। अपरं पं. उत्तमरल ठाणु २ पादरीए छि। तत्र पणि पारणा ४ थयां छि। पं. गंगरल ठाणु २ पादशाहपुरि । तत्र मासखमण १ पासखमण १ पंचोपवास ३ पारणां ४ इत्यादि सारूं छि। अपरं पं. तिलकरल ठाणुं २ उमेटि छि। कुशल छि। पासखमण २ थयां सांभल्यां । वणिकनो राग सारो छि। सहू. शातासुख छि। अपरं अत्रत्य संघमुख्य दो० श्रीहंसराज, दो० श्रीत्रिकम, दो० श्रीरूप,
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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