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________________ नवेम्बर - २०१४ २५९ २६० अनुसन्धान-६५ अथ स्वस्तिकबन्ध दोहरो म त गौ रुगु ता दया छ त पा ग शृंगार AVA चार म शो भि दानगु पो' ति म ध र वि जि प स त दितर सार्थवं र नाथ कांति शतनु नप्रका Aasy En गुरु गौतम महालब्धिवर, रतिपति सम मनोहार । चिर प्रततो पोति सुधर, रवि जिम सतत संसारि ॥२४॥ स्वस्तिकबन्धः । अथ कमलबन्धश्लोकः ल वंदो गुण भंडा उसे पत्त उदा PRE धा गण के रो शं गा रजो र हित शुद्ध आ चा नरल सरीश भ नाम |हिमा ते हनो जगि उहा श्री गुरु म ग्रा ण गु> /यको धि था धिबीज अभि अभिश का प्रिंकरोप, नए का नि सुखधाम-महोदाम-गुणग्राममधिष्ठितः। दानो नाम मनोगेहे, श्रीगुरु मम तिष्ठतु ॥२५|| || अष्टदलकमलम् ॥ श्रीतपागछशृंगारहार, दाता दयाल सुविचार सार, नरनाथसार्थवंदित उदार, रत्नप्रकाशतनुकांतिधार; नमीई ते नित्य भवकर्णधार, सूरज समान उद्योतकार, रीझवि भव्यजन जे अपार, रामशोभि दानगुरु पट्टधार. २६ अष्टारचक्रं पादाद्याक्षरैर्गुरुनामगर्भितम् ॥श्री:।।
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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