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नवेम्बर - २०१४
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अनुसन्धान-६५
श्रुतग्यान-परकाससै, जो सहसकर सूर, अखिल जगतमैं झलहलै, महिमा जसु महिमूर. ६ दिन दिन दिनकर तेजसो, जाको ब? प्रताप, कुमतअंधेरो मेटिकै, करै उदोत अपाप. ७ जाके मुख [परि] सारदा, कीनो सदा निवास, करतलि कमला विमलमति, रिदयसिरोरुह खास. ८ प्रतिरूपादिक चौद गुंन, दशविध साधुसुधर्म, भावन द्वादश भेद ए, गुंन छत्रीस सुभ शर्म. ९ इनि विधि गुन अनुंचानक, छत्तीसी छत्तीस, बसें ज्युं मानस हंस ज्यौं, ज्यों घटमैं सुजगीस. १० ग्यानादिक अनगारके, पंच आचार आराम, सिंचनकौं ज्याको बचन, अमृतधन उद्दाम. ११ ज्याकी बचनसुधालहरि, सीतल सुखद अत्यंत, भवदवताप निवारिकै, करत शांत जगजंत. १२ ज्याके तनुकौं छारिकै, दोष गए सब दूरि, गुणगुण तार्थं गहगहे, भए एकठे भूरि. १३ दरसन ज्याको देखतें, मिटै सबै दुख दंद, ज्याके कृपाकटाछ नै, उदय हुवै ज्यु अमंद. १४ पाउंधाएँ जिहां परमगुरु, तहां तहां मंगलमाल, नाम सुनत ज्याको जगति, बिपद होत बिसराल. १५ कृपादृष्टि जासौं करें, परमगुरु पल एक, ताको दुख दारिद हरें, लीला लहैं अनेक. १६ सुरतरु सुरमणि सुरगवी, आए ताके गेहि, मुख देख्यो जिनि पूज्यको, नैंन निसां धरि नेह. १७ तपागछ पाथोधिकी, वेलावृद्धिको हेत, पूरण पूनिमचंदसो, दोलति दूनी देत. १८
॥ अथ सवैया-तेईसा ॥ रूप अनूप नमैं निति भूप निरुपम भाग्यदशा उमगी' हैं। देस बिदेसि बिसेसि घरोघरि ज्याकी सुकीरति ख्याति जगी हैं। दारिद दूरि सुमूरति देखत आपद सेवककी उभगी हैं। दांनगुरु गुरुता भुअमंडल मंडिॉ अंबरि जाइ लगी हैं. १९ ॥ अथ सवैया - इकतीसा ॥ सकल बिद्याको सागर गुणमणिरतनागर विरागर ज्यौं विरागरसपूरि भर्यों हैं। दूरि करें दुरित पंक निसंक सकल कलंक मं0 रं0 भविक जयश्री वर्यो हैं। जगतको उपगारी जोग युगतिधारी ब्रह्मविद्याधिकारी अविकारी अनुसर्यो हैं। गछपति श्रीदांनरत्नसूरि परमप्रतापपूरि निति निति चढत नूरि उभर्यो हैं. २० जगको आनंदकंद मुखचंद सोहैं जाकौं देखत दुख दद सब दरि भाजत हैं। सुधातें सरस जाको बांनीरस निरुपम गुहिर गभीर नीरभर्यो मेघ गाजतु हैं। कंचनसुकोमल काय कांति भांति सुभगता देखि मकरध्वज आपु लाजत हैं। ऐसो गुरुराज आज भविक समाज के अताग भागि श्रीदांनरत्नसूरी राजतु हैं. २१ गिरिवरमैं मेरु गिरि सरिता मैं सुरनदी सर मैं मानससर श्रेष्ठ ज्यौं होत हैं। सागरमैं अति महंत सयंभूरमन रमनीमैं रंभ तेजमैं अदी त उदोत हैं । ग्रहगनमैं चंद चंदन सुगंधमैं बनमैं नंदन मनि मैं चिंतामनि सुज्योति हैं। तेसैं सूरिमैं सिरोमनि राजै छाजें छत्र ज्यौं तपागछिीदानरत्नसूरी सुगोत हैं । २२ लब्धिको अब्धि अभिनव इंद्र भूति अवतार सार धीरतासौं मंदरगिरि भायो हैं। श्रतशीललीलसौं जु ऐन वज्रस्वामी चामीकरसों विशुद्ध बुद्धि गुनगान सवायो हैं। गंगनीर निरमल निरालंब अंबर ज्यौं वंछित दातार जगि सुरतरू सुहायो हैं। श्रीदानरत्नसूरि भूरिगुन भर्यो श्रीभावरत्नसूरीवंस अवतंस कहायो हैं । २३