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नवेम्बर - २०१४
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अनुसन्धान-६५
थाइ । बीजू श्री शांतिनाथनि देहरि छो बध पगथारिया १२ कयाँ छि । बीजूं इणी दिशि वर्षा नीपजी। राजासुख, प्रजासुखसमाचार सर्व लखयोजी । पं. जिनविजय पंन्यासनी वंदना जरूर कहिवरावज्योजी । बी. गोकलीयो पणि हवि पजूसर्ण पछी उमेटे तथा मीया भणी भाल्यो छि ते पृछ्योजी । एहनि माहादेवनि देहरि वृत करि छि, सुख छि । श्रीशांतिनाथप्रभु श्रीवासुपूज्यनि अमारिवती जुहारज्योजी । केसवजी मुलजीनि बोलवज्यो। अत्रथी सा. कमानी वंदना वांचयोजी। सा० जेठा हेमा जगासानो वंदना वांचयोजी। सा. रामचंद्रसानी वंदना वांचयोजी। यतः सा झविरनी जेठीबाईई कालको छि। आषाढ शुदि मध्ये ते पृछयोजी । श्रीमिति वलमानपत्र लिखज्योजी ।
ल० कनकरत्ननी वंदना वांचयोजी संवत् १७९२ वर्षे भाद्रवा वदि र रवौ दिने
चिठी उतावली लखी छि।
(२३) श्रीदानरत्नसूरिजीने मीयागामथी उदयरत्नजीनो पत्र
प्रस्तुत पत्र मीयागामथी उदयरत्नजीओ दानरत्नसूरिजीने उद्देशीने पाठव्यो छे, कवि उदयरलजी ऊर्मिप्रधान कवि छे. काव्यर्नु प्रत्येक पद्य कविनी उत्तम कवित्वशक्तिर्नु उदाहरण छे. पत्रनी शरुआतमां सूरिजीना ३६ गुणोनी वर्णना कर्या बाद कविए पूज्यश्रीना पुण्यप्रभावनी नोंध सुन्दर शब्दोमां वर्णवी छे. त्यारवादना सवैया छन्दमां रचायेल पद्यो तेमज चित्रकाव्यमय पद्यो पण गुरुगुणस्तवनारूप ज छे. पूज्यश्रीने मीयागाम चातुर्मासमां थयेली आराधनानुं वर्णन करी अन्य शिष्यपरिवारादिना चातुर्मासनी महत्त्वपूर्ण नोंध आपेल छे. पत्रान्ते मीयागाम सङ्घना श्रावकोनी वन्दना कहेवापूर्वक त्यां पूज्यश्री साथे बिराजमान अन्य श्रमणवृन्दने वन्दनानुवन्दना कही पूज्यश्रीने मळवानी उत्कण्ठानी वर्णना करता पत्र पूर्ण करेल छे.
शब्दार्थ
१. छारिकै = छोडीने २. कटाछ = कटाक्ष ३. उमगी = प्रगट थई छे (?)
४. सुगोत = सुगोत्र ५. छिनु = क्षण ६. चाउ = उत्साह (?)
..[स]दा, य[ति](?).........
..........., सुंदर वदन सुचंद. [१] प्रणमु पर[म]......, .. पदपंकज प्रणति....., .....
...., प्रणमी पदअरविंद,
........, पत्र लिखु आनंद. ३ तत्र परमगुरु पुण्यनिधि, परमपूज्य आराध्य, परमवंद्य उत्तम परम-अर्चनीय श्रीसाध्य. ४ सागर सकल सुभाग्यको, नागरनतपदपद्य, आगर उत्तम नीतिको, रतनागर गुनसा. ५