SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान-६५ नवेम्बर - २०१४ २६५ संग्रहसीलगणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी अभिग्रहगणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी अविकत्थकगुणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी अचपलगुणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी प्रसंतरिदयगुणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी क्षमागुणसंयुक्त, श्रीआचार्यजी आर्जवगुणसंपन्न, श्रीआचार्यजी मार्दवगुणसंपन्न, श्रीआचार्यजी सर्वसंगमुक्ति-गुणसंपन्न, श्रीआचार्यजी द्वादशविध तपोगुणसंपन्न, श्रीआचार्यजी सप्तदशविध संयमगुणसंपन्न, श्रीआचार्यजी सत्यगुणसंपन्न, श्रीआचार्यजी सौच्यगुणसंपन्न, श्रीआचार्यजी अनित्यभावनाभावकाय, श्रीआचार्यजी असरणभावनाभावकाय, श्रीआचार्यजी संसारस्वरूपभावनाभावकाय, श्रीआचार्यजी एकत्वभावनाभावकाय, श्रीआचार्यजी अन्यत्वभावनाभावकाय, श्रीआचार्यजी अशुचिभावनाभावकाय, श्रीआचार्यजी आश्रवभावनाभावकाय, श्रीआचार्यजी संवरभावनाभावकाय, श्रीआचार्यजी धर्मसाधन-अरिहंत-दुर्लभभावनाभावकाय, श्रीआचार्यजी कुखीसंबल मिथ्यात्वरूपीयो तिमिररा दूरकरणवाला इत्यादिक छतीसगुणें करी राजमांन, सोभित सकलभट्टारकशिरोमणि, श्रीककुदाचार्यसंतानिय, चतुरसितीगच्छाधिराज, यंगम-युगप्रधानं, भट्टारकोत्तमभट्टारक, श्रीश्रीश्रीश्री १०८ श्रीश्रीश्रीदेवगुप्तसूरीश्वरजी, पंडितश्री २१ श्रीउपाध्यायजी श्रीआणंदसुंदरजी, पंडित श्रीनेमसुंदरजी, पं. विनयसुंदरजी चरणान् श्रीमेडतैसुलिखावतुं श्रीकवलैगछरा समस्त श्रीसिंध, वैद, मुंहता, तातेड, चोरडीया, समदडीया, लुणावतांसु आदिदेते(?) समस्तांरी वन्दना १०८ वार अवधारणोजी । मेडतेमें कवलगछरा श्रावक-श्राविकण्यारी विनती है अठे वेगा पधारसी नै कृपा-महिरवानगी करनै चोमासरा भाव रखावसी । घणे मांनसुं करनै आप गुरदेव.............. घीणानै तारो छो । श्रीवीतरागधर्म भाखो छो । अशुभ ................ रावो छो । श्रीजिनधर्मना दिपक छो । श्लोक : स्वपर [समय जाणें] धर्मवाणी वखांणे, परम गुरु कह्यांथी तत्त्व निसंकमांणे, भविक-कज-विकासें भानुना तेज भासे, ईह ज गुरु भजो जे सुद्ध मार्ग प्रकासै जनम दइ पिता मात जगइ, तो किरावर आय, चोपद तै द्विपद कीयो, तातै आप सवाय अबतो मोय अनाथकुं, तारिजै तत्काल, मै दीनन तै दीन हुं, तुम हो दीनदयाल गुरु पारस शिष्य लोह सम, स्वर्ण होत तिण संग, दै प्रबोध निश-दिवस तो, करै कीट तै भुंग ४ पृथ्वी सहु कागद करूं, लेखण करूं सब वनराय, सर्व समुद्रनी स्याही करूं, तो गुरुगुण लिख्या न जाय ५ अठारा समाचार श्रीजिनेश्वरदेवजीरी कृपा करनै भला छै । आप गुरुदेवांरा सदा आरोग्य चाहीजैजी । अपरं च समाचार एक वाचज्यो । आपरो कागद इणां दिनां मांहै आयो नहि सो दिवावसी । आप देवजात्रायै करतां मेडतैरा श्रीसिंघनै चितारसो । हमें पिण देवजात्रामै चितारां छां । कामकाज हवै सु लिखावसी। वलता पत्र दिरावसी । घणो कांई लिखा । थोडै लिखीयै घणो जांणज्यो । आप मोटा गुरुदेव छो । संवत् १९०७ रा शाके १७७२ वर्षे प्रथम वैशाख सुदि २ द्वितीयां तिथौ रवीवारे श्रीशुभं भवतुः । श्रीरस्तुः ॥ व(वे)दमुता धनरूपमलरी वंदणां श्री १०८ अवधारसी गणमानसु करन। व(वे)दमुता............................. वदणा श्री १०८ अवधारसी श्री गणमानसु कर । [आ पछी हस्ताक्षरो छे.]
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy