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________________ २३३ २३४ अनुसन्धान-६५ नवेम्बर - २०१४ आपकी सोभा गुणकिरती करनेकुं सुरगुरु वृसपत पार पानेक समरथ होय नही सो मनुस लोक कीरती करणेकु समरथ होय ही। ओर श्रीसंगपर श्रीजी महाराज क्रिया धरम प्रीती रखीयोजी... दीन दीन अधीक अधीक ताव रखावसी । श्रीसंगतो आपनो घडी एक भुले न्ही । आपकुं वांदण री घणी इछा वरते छै । सो तो जोगांनजोग कारणे आपका दरसण हुसी । आप गुजरात्र देसमाहे भाव भगतीसु लोभाय रहा छो । कोइक दिन मरुधरामांहे जरूर पधारसी। ओर अठे चोमासी गुराजी परमोदविजयजीसुनि मीलाया सो ओ बोहत गुणवान है। आछा पंडत सुत्रांना जाण छै । भेन भिनकर सरवकांनै समझाय रहा है। सु जागासु इसा ही ज पंडत सूत्र सिधंतरा जांण चोमासे मिलावसी । संग जोग्य काम बंदगी लिखावसी समत् १९१६ रा मिती चेत्र सुदि ४ सोमवार ॥ अथ समस्त संघ वीनती ॥ ढाल ॥ वैशाख वदि पंचमी दिने - ए देशी ॥ पंचमीरी सिझायमे लक्ष्मीसूरि करेल मध्ये ॥ संघ सकल करे वीनती सुण सूरीजी रे, अवधारो महाराज सहु सिरताज सुण ग्यानीजी रे. १ उच्छव करवा सुभमती सुण सूरीजी रे, संघ तणे मन रंग, अति उमंग सुण ग्यानीजी रे. २ सोभागी जगमां तुमे सुण...... महिमानिधि गच्छराज, बहु गुणभाज सुण..... ३ भविक हृदय प्रतिबोधवा सुण....., चूडामणि सम सार, सुखदातार सुण..... ४ ए पुर तुम चरणा थयां सुण....., सुद्ध होस्ये विशेस, टलस्ये क्लेस सुण.... ५ धरम नीयम अधिका हुस्ये सुण..... दाननी मंगल माल, झाकझमाल सुण.... ६ ना(स्ना)बादिक पूजाविधि सुण..... पोस उपधान विसेस, क्रिया उदेश सुण..... ७ देईने श्रीसंघनी सुण...... पुरो मन अभिलास, ए अरदास सुण..... ८ प्राज्ञ कल्याणनो इम भणे सुण..... प्रमोद कहे सुभ देश, यो आदेश सुण..... ९ ॥ इति वीनती अवधार्य || श्रीः ॥ अथ श्रीजीचरणारबिंद वधावो ॥ ॥ ढाल ॥ वालाजीनी वाटडी अमे जोता रे - ए देशी ॥ श्रीदेविंदसूरि वधावो रे, मोत्यां थाल भरी भरी ल्यावो रे, एतो जगबंधव जगनोवो, भविजन भावसं सरि वंदो रे. १ [ए आंकणी] कुंकम चंदन गवलि पूरो रे, कंचन चं(त)दुल स्वस्ति सनुरो रे, गावो मंगल वाजिब तुरो, भवि..... २ सुहागण वारणा करती रे, दान याचककु देती रे, सूरी आगल घुमर लेती, भवि..... ३ अति हर्ष पमाडो गुरुने रे, टाली आसातना करो विन्ने रे, एहनि आण धरो तुम तन्ने, भवि..... ४ इम प्रमोद तणी सुणी वाणी रे, सूरिशेवा करो भवि प्राणी रे, जिम पामो शिवपटराणी, भवि..... ५ ॥ इति वधावा ढाल ॥ अथ रहस्य ॥ दूहा : नर नारि जोधाणना, करे राजनी चाह, कामकाज सवि छोडने, कुकरादृष्टि लगाह. १ पूज्य नाम हृदये थकी, भुला नही लीगार, घणी विधसुं करा वीनती, स्वामी वेग पधार. २ श्रीआचार्यगुण बोलतां, रसनाने नही दोस, उगति जुगति देखी करी, म करो कोई रोस. ३ सूरिगुण चत्त लावतां, जिह्वा थाई शुद्ध, रत्न भणे अति शिघ्रसुं, खमज्यो शुद्ध अशुद्ध. ४ ॥ इति रहस्यं ॥ सं. १९१६ वर्षे फा० सुदि ५
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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