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________________ नवेम्बर - २०१४ २२५ २२६ अनुसन्धान-६५ मोटी वड वडी मजीद, पढते यवन तहां कर प्रीत, मोटा अडिग "मनाराक्, सब ही देखके साराक्, तकिया फकीरुं का फाब, उहां कहे अरकि का जाब, आसण मठ जहां अनेक, योगी संयोगी हे केक्, छिब वर्ण पवन छत्तीस, वदी हु नाम विस्वावीस, खेत्रि विप्र वणिक ही खास, वसते आप आप आवास, कायस्थ की ते देवीदाश, वसते सुद्ध घर की वास, सोनि जाट छिबा सुद्ध, वलि गेहरिद्ध बहुबुद्ध, घानजा लुहार खाति बुद्ध, अपने काममे भरपूर, कंसारा भरावा कुंभार, वणिगर सोरगर अणपार, "खारोल घांची मोची खंत, वड वड नगरमे वसंत, "खेरादि “चुडीगर "घटीक, ठाचा नगरमाहे ठीक, भडभुंजा माली चारण भाट, खासे द्रव्य घरमे खाट, लखारा सकला घर लाखां, भल भल रहे ते भाखां, "डबगर "सीसगर दरसाव, तेली तंबोली बहु चाव, भाख ही "कलाल ही का भेद, खाटे द्रव्य न करे खेद, वली तिहां अन्य बहु वसतीक्, इहां तो कहीई एतीक्, वणिया सेहर-कोटका वणाव, देखे होय ते न लगे डाव, अतहि विस्तार हे जु उत्तंग, भल परबत करत तु भंग, पाहाड अनड पवेद्यक्, भुजबल हणुमतकुं भेट्याक्, ज्वालामुखी देवी जोत, अहोनिस रहत हे उद्योत, सहिर बाहिरकी सोभाक्, अब कहुं सुणो नर दिल-पाक, सीतल नीर सागर सूर, सागर वखत बहु जलपूर, वालहि समदरका वरणाव, पंडित तिहां देख घर पाव, जलविच महिलायत मोटीक, लागे द्रव्य लख कोटीक, वागां सिरेमाहि च्छेल, जीसमे वडे अद्भूत मेल, क्रिडत तखतसिंघ महाराज, करते सहल अतहि साज, वणियां तिहां अदभुत बाग, छोगा "छयलके चित्त लाग, तिणमे अंब दाडम दाख, सर्व व्रक्ष विस्तरे हैं साख, जांबु नीबु "किरणा केल, सीताफल बद्रिफल मेल, "सुरुंज काकडी हे हजार, घट ऋतुफल हे तिण मझार, "गुलदावद हे गुलाब, अंगपे धरत वधे आब, मोगरा मरुआ चंपेल सार, जहां भमर [मधुर] गुंजार, पीपल वड ही "बोहो परचंड, जहां पंखिनका बेठे झंड, मेला मंडत हे मोटाक्, द्रव्य न चलत हे खोटाक्, इक हे १० राइका आराम, देखत सरत सबहि काम, सेखावत सरवर सार, आप रहे भर अपार, सरवर बहुजीका सुध, देख्या नीर जाके दुध, अखय तलाव अखेराज, संघवी करायो सिरताज, कायलाणा महल हे भारीक्, सरवर तखत हे वारीक, भट्टारक दीपका तलाव, नीचे वागका फेलाव, मिंदर कीया थासी ताम, लागा तिहां अतहि दाम, बहु सुघट्ट सिवका थान, अध बन्या अजा एड मुकान, मेला भरत हे भारीक्, अबरेखा वागकी त्यारिक्. नाडा बडा सुखदायक, राजे सदा गणनायक, कागा चागकीरत्त, सहु नर कहे सुणज्यो सत्त, उसमे चीज हे चीतचाह, लायक नर लेत हे जु लाह, तहां इक देवीका ठांम, आसपुरी जीस नाम, भगति तहां करत भंडारीक, देवी बहुत हें प्यारीक्, महामिदरकी छब देख, सुर नर रहे नेना पेख, मिंदर उदेहीकुं जाण, जीसमे जलंदर का थान, सागरलाल ही भरीयाक्, दरषत सब हे हरीयाक्, मंडोवर सहर०२ अतहि मोटाक्, कायम गढ नव कोटाक्, छाजे पवन छत्तीसेक, दरसण घट तिहां दिसेक्, वड वड वागका विस्तार, फेले फुल फल अपार, पारसनाथका परसाद, झलर नगारुका नाद, छत्रिवनी मानसिजी रीक्, दरसण भरत लोक भीरीक, मिंदर तहां दोय मोटाक्, पांच च्यार हे छोटाक्,
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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