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________________ नवेम्बर २०१४ तेज पुंज दिनकर तपंत, जिनकी श्लोका जगत जपंत, देत आसीस नित सहु नर नार, चिरंजीवो कोड अनुवदत जयकार, इणविध सहु देत हें आसीस, वाणी वदत वीश्वावीस, जा के कुमर हे सुकमाल, जिनका सुजस हे अपार, गढ जिहां अनड अतहि उंचाक्, परगट गगण लग पोहचाकू, ओपमा कहा देत बुद्धीवान्, विश्वमे लंकगढ ही जान, कंगुरेकी बनी हे ओल, नभमे तारागण समतोल, भुरजां चंड वडी भारीक्, सबही अडग हे त्यांरीक्, नव नव हात तिण पर नाल, शत्रु देख मानत साल, तिणका नाम कीलतोड, वीजलि कटक दुस्मन मोड, चोकीला बान हे केकान, लाखां कोड हें तहां जान, जंबु रेखला जुंजाल, वयरि देख होत विहाल, परगट च्यार प्रौढि पोल, राव तहां करते रोल, महिल अटल मनमान्याक्, जगमे इंद्रलोक जान्याक्, मोति खापर ओर बहु मेल, नाजर तहां करते टेल, बहु तहां जाली गोख, जिहां नर बेठ करते जोख, चोकी हे बडी सिणगार, आगे सभामंडप सार, दपतर बडा है भारी, जहां लिखते इक तरीक, सुरजपोल सिरे मान, आगे अंतपुर ही जान, घडीयाल करत हैं टंकोर, नोबत घुरत हे घनघोर, खजाना खूब हें भरीयाक् देखत काज सब सरियाक्, आतमरामकी समाद, सामा जलंधरका प्रसाद, चामुंडा वडी हे महकाय, देवी बेचरा हे साय, टांका खुब भरीया थाट, उपर वडका गहगाट, बडी सुघटा लोहापोल, बेठ सुभट अतहि टोल, आगे पोल अमरतीक्, लखणापोल हे अडतीक्, झरणा झरत हे अपार, संभुनाथका दरबार, धुवपोलसुं चलीयाक्, पट्टा खुब ही बधीयाक्, भेरुनाथका हें थान, जाकी नाम चोकेलाव, २२३ २२४ अनुसन्धान- ६५ सिद्ध हि पोल फेर गोपाल, आगे वडी हें बहु साल, फतेपोल हे अनुप, वरण्या गढका सरूप, वली करूं सहर का वखान, गुणिजन सुनन दे दे कांन, बहुत हैं चोवडा बाजार, पंकत हाट पाव न पार, झुक रही हवेली झाझीक, माहें मनुख्य रहें माझीक् कोरणी खुब हें एसीक्, इलमे देख नही एसीक्, जिगमिग रहें जाली जोत, रवी प्रतीबिंब होत उद्योत, जिनमे पदम सरवर जांन, वलि राणिसर हि वखान, स्त्रीयों वहत हे जोडाक्, पणघट लागते कोजक्, गहरा सागर फब ही गुलाब, सागर फते अमृत आब, गंगेलाव फुलेलाव, चित्तमे देखने का चाव, तापिवाव जेता कूप, रूडा नगरका हें रूप, चावि सिरे चांद हि वाव, जिस पर वडका फेलाव, सरवर मान उदधि समान, परगट नीर गंगा पान, गंग ही स्यामका देहरा, मानु सहरका सेहराक्, कुंजविहारीका परसाद, वली आसमानसें करे वाद, वड महाराजकी सुन वत्त, मिंदर करे प्रभु अनुरत्त, भेटे महावीर देहराक्, परगट पासका हे राक, सुख करते शांतिनाथ, ध्यान धरूं सुमतिनाथ, रीखभदेव देहरा भारी, पाव पुजते नारीक, पास हिवानका परगट, थपे देहरा जु थट, तलहटी महिल मान्याक्, जगमे इंदलोक जान्याक्, कोटवालि चबुतरा के साक्, जोवो देवलोक जेसाक्, वन्यो तिहां अधुना कूप, जल भर्यो हे अनूप, सायर एनका कोठार, भरीया बहु द्रव्यभंडार, तपगछ ओपासरा क्षेत्रपाल, वांहांकी करत हे रखवाल, वृद्ध लघु केई " भलभाक् ज्योज्यो उपासरा जेताक् परगटतां बहु पोसाल, बहु बहु तहां पढते बाल, अस्तल भगतका एताक, दान हि संतकुं देताक्,
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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