SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवेम्बर - २०१४ २२७ २२८ अनुसन्धान-६५ कहीये देव तेतीस कोड, छावा लाधते इक छोड, देवल बहुत हि देख्याक्, परगट कोट गढ पेख्याक्, भेरुं जहां हे भारीक्, पूजत पाव नर नारीक्, ओर बहुआइ ठाण, कहा करुं तिनकी छाण, वरणुं "मुसद्दी का हुं भाव, सच हि सुनत लागे चाव, यवन करत हे दिवाण, चगसि सिंघवीकुं जाण, कायम देख कीलादार, जाका सुजस हे अपार, व्यास हि प्रोहितकुं मान, हाकम कोटवाल ही जांण, श्रावक वडे हे सुजाण, सदा धर्ममा पेचोण, सिंघवी इंद्रमल हे नाम, सदा बुध हि के ठाम, कुसलराज फोज ही राज, जिणके भुपका बहु काज, समरथराज ही वडभाग, नृपभक्तसुं अनुराग, उमेदराज उदेराज, करते राजहीका काज, प्रेमराज सीवराज ही नाम, जाके सदा ध्रमसुं काम, गीरधारीमल बुधके धाम, जिसके सदा प्रभुसुं काम, कुवरचंद भंडारीक्, जामे बुद्ध हे भारीक, जसराज राजकाज स[व] देख, जीवही राजका ध्रम लेख, सिरेमल समरथमल, जिनका सुजस हे अटल, गेवरचंद हे गुणवंत, जाकी साय हे भगवंत, मालमचंद ही सुजान, जिनकुं धरमकी पेचान, भागहीचंद का जस जहार, सवीरचंद हे गुणधार, देवीचंद गु[ग]णेशचंद, बहुत बुध ही के कंद, लुणावतभं चांदहीमल हे नरनाथ, जाके धरम ही की गाथ, अनहीराज सिरेमल, जामे बुद्ध हे अटल, दीपावत रतनचंद करणीयदान, जीतमल हे बुधवान, मनावत दीनानाथ हे वछराज, हंसराज ही आणंदताज, मुता मुकनचंद वडभाग, जा पर भुपका अनुराग, धरम ही ध्यानमें चित्त धार, करते संतकी बहु सार, मुता बुधमल कोचर, सेवा करत हे बहु नर, परतापमल मुणोयत, जीनकी न्यावमे हि रत्त, विजेचंद वीजेकार, भूप राखते हे सार, सेठ केसरीचंद सुजान, जिनका नगरमे बहु मान, श्रीश्रीमाल गुलालचंद, नवलसाह हे सुखकंद, खीवसरा सांड गोलीया सराप, जपते देव अरिहंतजाप, मणीयार ललवाणी मुख, डार एगमन अलगा दुख, सब ही नगरका वणाव, गुणियन कया गुरुसुपसाय, मो बुध अल्प रे अनुसार, सुकवी भुल-चुक संमार, देख्यो नाहि माहि ज दोस, रखे कोइ करो रीस रोस, संवत उगणीसहसोल १९१६ जाण, सुदि फागुण मास हि जाण, पंचमी सुक्लपक्ष हि पेख, रत्न कहे अलि लग्न देख. कलश : गजल कही ते गुणी सही रिझें सदाई, श्रावण श्रवणां सुणे भलि विध तिणे मन भाई, योगी यंगम जती सती रतिवंत सुणत सत्त, सुणी योधाण वखाण वदे मुख साची मत्त, अवर नर रीझें अवस सरस वाक्य सुणने सदा, धन रल साची कहि, कुडी मत जाणो कदा. १ ॥ इति योधनगरवर्णनं ॥ अथ इतश्च लिखित भाषा ॥ दूहा : श्रमणोपासिक तपगछना, श्रावि घणु सुविचा[र], धरम नियम नित सांचवे, जोधहि नगर मझार. १ प्रभुपूजा नित सांचवे, त्रण्य टंक वलि तेह, परवादिक आव्या थकां, निवाणुभेद करेह. २ गुरुभक्ति विधिसुं करे, भात-पान पडिलाव, भेषज वस्त्र पात्रादिके, मन धर अधिको भाव, ३ ग्यानं धरम गुण दानना, ग्राहि व्रत धारंत, ज्ञाताधर्मकथा सुणे, जिनसासन उजमंत. ४
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy