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________________ नवेम्बर २०१४ भवअंबूथी तारे जे साहिब मोरा, तेह चारित्र अमुल हो, ते सूरिअंगे सोभतो साहिब मोरा, गुण षटवीसमो अतूल हो. २२ रसनो..... तपाचार भेद बारसु साहिब मोरा, षट् बाह्य रस मध्य हो, २१९ सगवीसमो गुण ए ग्रहो साहिब मोरा, ध्यान-द्वय तुम लद्ध हो. २३ रसन...... रस अष्टावीसमे गुण वस्यो साहिब मोरा, महावीर्यनो पुंज हो, अनुष्ठाने बल फोरता साहिब मोरा, सूरि महा धर्मध्वज हो. २४ रसनो...... समदृष्टि भूमी दीइ साहिब मोरा, भाषा निरवद्य प्रकास हो, दोष रहित असन लीइ साहिब मोरा, अभिग्रह धरे सुविलास हो. २५ रसनो...... गुणतीसमे गुण सूरिजी साहिब मोरा, इर्यासुमती धार हो, धनुष एक दृष्टि दिई साहिब मोरा, सदगतिना अधिकारी हो. २६ रसनो..... अग्नि गगन (३०) गुणे तज्यो साहिब मोरा, सावद्य वयण निवार हो, गुण इकतीसमे एषणा साहिब मोरा, बेतालीस दोष विचार हो. २७ रसनो...... आदाननिखेवणसुमि साहिब मोरा, बतीसमे पढिलेण हो, पारिठावणियामि साहिब मोरा, गुण तेत्तीस प्रवेण हो. २८ रसनो...... गुण चौतीस इत्थथी साहिब मोरा, आतमरामता गोप हो, गुण पणतीसमे गुण वाक्यने साहिब मोरा, गोप्यो विभेदे कोप हो. २९ रसनो...... चेष्टा नियुक्ति रूपता साहिब मोरा, यथासूत्रनी चेष्ट हो, इम घटतीस गुणे करी साहिब मोरा, करता धरमे पुष्ट हो. ३० रसनो...... ॥ इति षट्त्रिंशतिगुणस्वाध्याय । ननु औदार्यादिगुणान् त्यक्त्वा चतुर्विंशतिगुणान् मुक्त्वा अन्यगुणा वर्णिता इति चार्वाकवचं, तस्योत्तरं अव्याप्ति-अतिव्याप्तिअतिरेक-असंभवदूरिकरणार्थं षट्त्रिंशतिगुणा अन्यत्र न लभ्यते । अथेत्यादि रनेकोपमा इति विचिन्त्य । सूत्रोक्त गुण षट्त्रीससुं, वर्णव्या श्रीगणराय, पुनरपि गुण बहुला अछे कहतां पार न थाय. १ छत्रे सोभित महिपति, वंदे जस नित पाय, गुणस्तुति कुण जाकी कहे, अपनि बुद्ध उपाय. २ पिण मे भक्तिवसे करी, गुण स्तव्या सूरिराज, बाल्यकल्पनानी परे, देखायो सरसाज. ३ २२० त्वद्गुणस्तवनाथी लहे, मणुआ पाप विणास, जिम तपन उदयथी भजे, महातिमिर निर्नास. ४ मनीषोकर प्राक्रम महा, दया तणा भंडार, ज्ञान उदेशे तत्परा, इण कलियुगमे सार. ५ देशी ॥ ॥ ढाल ॥ मोतीडानी तुमे जिनसासन सूर्य समान, तुम सोभा नवि रहि छान, - अथ छंद अनुसन्धान- ६५ साहिबा सूरिश्वरराजा, मोहना सिरताजा, तुम देशना अमीय समाणि, सुणि तरिया केइ भवि प्राणी साहिबा ......१ द्वादश अंग तणी नय जाणो, मूल टीका निर्युक्ति वखाणो साहिबा .... मोहना..., च निखेपे प्रतिमा थापो, मिथ्यादृष्टिना पडल ते कापो साहिबा .... मोहना....२ खंत्यादिक दश गुण तुम धार्या, राग-द्वेष बे चोरने मार्या साहिबा .... मोहना...... सत्तर प्रकारे संयमधारी, मुक्तीमारगना अधिकारी साहिबा .... मोहना....३ मूरख सिष्यने श्रुत-मति आपो, सारधार करी मारग थापो साहिबा .... मोहना...... यात्रा करो निरंतर जिननी, पारन हो नवि लहे तुझ गुणनी साहिबा .... मोहना.....४ अंबुनिधि भुजबल करी तरवा को पुमान करे मति लघुवा साहिबा .....मोहना...... किलोलमां जलचर छली जावे, बोत चितरे तुझ गुण किम गावे साहिबा ... मोहना...५ तुझ काया दीपे कंचनवान, अंखड अंबुजपंखडि मांन साहिबा ..... ...मोहना...... ओष्ट रक्त शशी अर्ध सम भाल, कर चरणे रेखा विसाल साहिबा .... मोहना.....६ इण विधि करि स्तुति देविंद सूरिंदा, स्तोक पणे करि मन आणंदा, दीन दीन सवाई होत कल्याण, विजयप्रमोद धरे तुम आंण साहिबा ....मोहना ....७ ॥ इति इत्यादिगुणवर्णनं ॥ ढाल || अथ अत्रतो लिखते इति परिभाषा ॥ दूहा : अष्टोपरि सत सहस्रश्री, सोहे तुम सन्मान, इत श्रीसंघसुभटके, लिखे पत्र कमलान. १ छप्पय ॥ कवित्त ॥ तपगछनायक पदयु[ग]ल, लिखे लेख उच्छव कर, मधुकर चाहत जेम, फूल मालती वास-चर, तिम नर-नारी वृंद, देश मरुधरना रागी,
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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