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नवेम्बर - २०१४
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अनुसन्धान-६५
[पोलां सात प्रचंड छै.... पृ. २०१ पछी-]
राणीसर जग दीपतो, जीपतो लहर तरंग सुगुरुजी, गुलाबसागर जलथी भर्यो, रहत सदा जल चंग सुगुरुजी. ७ मरुधर..... तिहां राजा जग राजतो, गाजतो तेज अनंत सुगुरुजी, मांन महीपति मरुधरै, बुद्धिबलें विलसंत सुगुरुजी.८ मरुधर..... सूरवीर साहसधरु, खाग त्याग निकलंक सुगुरुजी, जोधांसिरे जस जयकरूं, सबला मांने संक सुगुरुजी. ९ मरुधर..... वचन न खंडे आपणो, धर्मथी अधिक मंडाण सुगुरुजी,
तन धन ममता परिहरें, सिद्ध वचे सुप्रमाण सुगुरुजी. १० मरुधर...... ॥ छंद - त्रिभंगी मरुस्थलस्य ॥
सहुदेसासारं, ........ [वंदुं चित्त लाय के'. पृ. २०५ पछी-] रूपविजय महिमानि(नी)लो, रत्न मुनिवर हो रत्ननी खान कें, हीरविजय अति हरखसुं, नित सेवे हो दानविजय जांण के. ३ श्रीविजय.... सुदरसनविजय चित्त उजलें, विवेकसागर हो अति विनयप्रधान के, गुमानविजय गुण आगला, रंगसागर हो रहें चरण प्रमाण के. ४ श्रीविजय.. इत्यादिक मुनिवरघणा, सेवें सदगुरु हो नित चित्त लगाय के, मन तन वचनथी साचवे, गुरुसेवा हो सव सुखनी दायकें.५ श्रीविजय..... इहांथी वंदें भावसुं, नगजयमुनि हो नित नवले रंग के, ईसरविजय आणंदथी, सिधजयमुनि हो मनरंग अभंग के. ६ श्रीविजय..... रिषभविजय रंगें नमें, नवलमुनि हो तुम वंदें भाय के, मानविजय मनरंगथी, संभूमुनि हो सुभ वदन उमाय के. ७ श्रीविजय..... गौतम जयपद चाहतो, मुनिभावें हो मोती मन आंण के, दुरगो जीतो जयकरु, भगवानो हो गंग अगर प्रमाण के. ८ श्रीविजय..... इहाथी मोहन वंदना, मानीजै हो गुरु वार हजार के, सहु मुनिवरथी वंदना, कहज्यो अहनिशि हो नित करुणाभंडार के. ९ श्रीविजय..... रामसिरी अति रंगसु, वंदै सुभ मनै हो पूरै अनुराग के, कनकसिरी करै वंदना, अमृतसिरी हो अधिकै वडभाग के. १० श्रीविजय.....
धन्य ते श्रावक श्राविका, गुरुचरणें हो रहें चित्त लगाय के, तेहनें धर्मलाभ माहरो, वलि संघनी हो वंदना मुनिराय के. १०(११) श्रीविजय..... तिहांना संघ प्रतें वलि, सहु संघनो हो कहज्यो परणाम के, संघ प्रतें संभारण्यो, देवदरसने हो करुणाना धाम के. ११(१२) श्रीविजय..... संवत रसनवसिद्धविधु (१८९६), पोषमासे हो शुचि पांचमी दाख के, गुरुवारें गुरुगुण भला, गाया भावे हो तन-मननी साख के. १२(१३) श्रीविजय..... तपगछमा अति दीपता, गुरु गिरुवा हो गुणना भंडार के, गुलालविजय गहरा गुणी, शिष्य दीपक हो जय सिद्ध मन धारकें १३(१४)
श्रीविजय.... ॥ श्री जिनाय नमः ॥ स्विस्ती श्रीविसलनगर सूभ सुथांने पुज परमपुज सरब औपमाविराजमान, अनेक
ओपमालायक००० छतीस छतीसी एकसौ आठ सूरीश्वरगुणै करी विराजमान, जंगमजूगप्रधान, सकलभट्टारक सिरोमणि पुरंदरभट्टारकजी श्रीश्री१०८ श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री विजयदेवेंद्रसूरीश्वरजी चरणान् चरणकमलायत जोधपुरथी सदा अग्याकारी चरणसैवि समसत संघ लिखतं वंदणा १०८ वार दिन प्रते त्रिकाल अवधारसि अठारा समंचार श्रीश्रीजीरा तेज प्रताप सुनिजर कर भला छै। श्रीश्रीजी साहबा रां धरमध्यांन खांन पांन रा सदा सरवदा आरोग्य चाहीजै । श्रीश्रीजी साहबा रां दरसण री अभिलाषा अत्यंत है सू संघ ऊपर कीरपा करनै दरसण दीरावसौ तिको दिन सफल हुसी । अठे चांमासा ऊपर संघरे नांवे सूवरण वरणा आलंकृत पत्र सदा आवै है । सू अस आयौ नही सू किरपा करनै दीरावसी । संघनू भुलौ न चाहीजे। संघ तो सदा सुसेवक छै। तथा उण चामासी संघ उपर कीरपा करनै पं. श्रीसिधविजेजीनू मेलीया सु घणा जोग्य छै ने श्रीजिनराजरौ धरमध्यांन पोसो पडिकमणौ वखांणवाणी जिनपुजादिक री बधोतर उछव आछी तरैसू हुवा छै। ने फैर उछव धरम री वधोतर सदा हुवै छै, ने वाख्यांण श्रीनंदिजी मे श्रुतज्ञांन रौ, उपदेसामे समकीतसूत्र रो ईधकार वचीजै छे सु मालम रैहसी । नै आवतौ चांमासो अठे रखायासुं संघनै उपदेस धरमध्यांन पढावण री बधोतर आछीतरैसू हुवै छ, सु कीरपा करने चांमासौ बेठा-बेठ रखावसी । संघे वीनती अठे खेत्रेमे धरमध्यांन रौ कालानुसारै लाभ देखने लिखी है। सू जरुर मनावसी । बीजु तौ श्रीश्रीजी साहब कीरपा करने मेलो सु प्रमाण छै। पीण अवरके तौ जरूर बेठाबेठ रखावसी ।