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________________ नवेम्बर - २०१४ १८३ १८४ अनुसन्धान-६५ नगर सदा रखवाले हो, प्रतिपाले अंबा कालिका, भीमनाथ महादेव, जालेसर दरवाजें हो, विराजे अधिकी खंतसुं, सारें सब जन सेव. १५ सहु..... हीरावाव सुचंगी हो, नहि भंगी गंगतरंगथी, पालीबंध तलाव, वाग मनोहर सोहे हो, मन मोहें रागी लोकनें, देखत अधिको चाव. १६ सहु..... धर्मसाला सुविसाला हो, तिहां जाला कर्मना कापवा वडतपगछनी सार, जाली गोख जरोखा हो, जहां "जोखां करता मुनिवरा, धर्मध्यान उरधार. १७ सहु..... तेह नगरना वासी हो, विसवासी इक गुरुचरणना, वीनति करें बहुवार, पूज पधारें वेगें हो, नहि छेगें संघनी वीनती, साथे मुनिपरिवार. १८ सहु..... संघ वधावै हरखै हो, धन वरषै पावस मेघज्युं, गुहलीगीत रसाल, भक्तिवसें गुरु आगे हो, वड भागे आगम सांभलें, सिद्ध सहाइ विसाल. १९ सहु.... ॥ छंद - छप्पय ॥ वीसलनयर सुधाम, सहर सारां सिरसेहर, धर्म दया उरधार, पापदल दूरे परिहर, संघ सहु त्रिण वार, साचै मन जिन सेवै, भावै द्वादश भाव, दान सुपात्रे देवै, विजैदेवेंद्रसूरि वंदै विविध, भाव सक्ति मति अनुसरै, वीसल अनूप गुर्जर धरै, कवि ओपम कहां तक कर. १ दूहा : सहरा घणा उण देसमें, एक एकथी सार, पिण सहू जगमां परगडो, वीसलनयर उदार. १ ॥ म्हारा पगल्याने पायल लाज्यो - ए देशी ॥ गुणनिधि गुज्जर मोह्या हो सदगुरु म्हारा, छयलछबीला हो श्रावक देखने, थारी सूरति अति सुंदर सुखदाइ हो सदगुरु म्हारा, नयण उमाया हो दरसण पेखवा.१ जिम चंद चकोरी मेहा हो सद..., चात्रक मनमे हो नित प्रति चिंतवै, जिम चंपकतरुवन लीनो हो सद..., भमर ते भीनो हो नित प्रति चिंतवै. २ वलि दिनकरतेज उमाया हो सद..., कमलनी विकसें हो सहसकिरण थकी, तिम तुम्ह गुण मन लीणो हो सद..., तन वलि चीनो' हो गुरुचरणां थकी. ३ गुर्जरलोक ठगारा हो सद..., मोहनगारा हो मोह्या गुरु भलै, स्युं स्युं बोली बोलें हो सद..., कपट न खोले हो अंतर एटले. ४ पीलर वरण देहा हो सद...., मानवदेहा हो सुंदर भामनी, कृसतनु केसरवेसें हों सद..., अंबरदेसें हो मार्नु “दामनी. ५ गुरुनी भक्ति घणेरी हो सद...., करै अनेरी हो नव नवी भांतसुं, दुमक चिंतामण पामी हो सद...., तिम परि परिखें निरखें खांतसुं. ६ मात सरूपा उरजाया हो सद...., सुजस सवाया हो अमीकुलचंदमां, दिनकर तुल्य प्रतापी हो सद...., चोपडागोत्रे हो जिम घन चंद्रमा. ७ गच्छ चउरासीनो राजा हो सद..., चढत दिवाजा हो तखत तपा तणे, जोधाणे नयर पधारो हो सद..., अरज अवधारो हो संघ सहु इम भणै. ८ दरसण द्यो वडभागी हो सद...., तन-मन-रागी हो इक गुरुचरणथी, प्रवर पंडितपदधारी हो सद...., दीप जयकारी हो सिद्ध कहै सरणथी. ९ दूहा : सारद सार दया करी, दीजै वचन विलास, गुण गाउं सदगुरु तणा, अष्टोत्तरशत खास. १ ॥ चंदाप्रभु मुखचंद सखी मोए देखन दे - ए देशी ॥ पूज चरण सुखदाय सखी मोयें वंदन दे, अहनिशि नमु चित्त लाय सखी मोयें वंदन दे, इंद नरेंद मन भाय सखी मोयें वंदन दे, तन मन वचन उमाय सखी मोयें वंदन दे,
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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