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________________ अनुसन्धान-६३ श्रीनेमविजयविरचितं श्रीस्तम्भन-सेरीसा-शद्धेश्वरपार्श्वनाथस्तवनम्* सं. सा. श्रीकुमुदरेखाश्रीजी काव्यना सम्पादनमा आधार बनेली प्रत सं. १८५७नी आसो वदि ११ना दिवसे पालिताणामां मुनि लालचन्द्रे लखी छे. प्रत अत्यारे जैनशाला - खम्भातना भण्डारमा छे (डा. ११ पो. १५ प्र. ५६). प्रत आपवा बदल भण्डारना कार्यवाहकोना अमे आभारी छीओ. काव्यना सम्पादनमां पूज्य आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजीना शिष्य मुनि श्रीकल्याणकीर्तिविजयजीओ घणुं मार्गदर्शन आप्युं छे, जे माटे अमे तेमना ऋणी छीओ. (नोंध : श्रीस्तम्भनपार्श्वनाथ, श्रीसेरीसापार्श्वनाथ अने श्रीशङ्केश्वरपार्श्वनाथनो इतिहास वर्णवती प्रस्तुत रचना, तपगच्छपति श्रीहीरविजयसूरिनी परम्परामां थयेल श्रीनेमविजये सं. १८११ना फागण सुद १३ सोमवारे रची छे. स्तवननी छेल्ली ढालमां कर्ताओ स्वयं दर्शावेली तेमनी गुरुपरम्परा आ मुजब छे : श्रीहीरविजयसूरि → शुभविजय → भावविजय → सिद्धिविजय → रूपविजय → कृष्णविजय → रङ्गविजय → नेमविजय. गुजराती साहित्यकोश - खण्ड-१, पृ. २२६ पर आ नेमविजयना नामे नीचेनी कृतिओ नोंधाई छे : १. प्रस्तुत स्तवन २. १६ ढालनुं गोडीपार्श्वनाथस्तवन ३. ११९ ढालनो कामघटरास ४. ४५ ढालनो श्रीपालरास ५. सज्झायो. कतिओना विशाल कद परथी ज कविना काव्यकौशल अने विद्वत्तानो अन्दाज मळी शके तेम छे... प्रस्तुत काव्य २७ ढाल अने २९९ कडीमां फेलायेलं छे. (ग्रन्थ प्रमाण ३५० श्लोक). अत्रे ढालसङ्ख्या गणवामां थोडी मूंझवण थाय तेम छे. केम के १०मी ढालना अन्ते कवि ओम कहे छे के "नेम कहे ढाल इग्यारमी प्रगट करूं हवे आंहिं". मतलब के हवे शरू थनारी ढाल अग्यारमी छे. तेनी सामे ज्यां ओ ढ़ाल पूरी थाय छे त्यां पडिक्त छे - "बार ढाल रसाल ओ नेमविजये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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