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________________ जान्युआरी - २०१४ कही" - आम कर्ता पोते अक क्रमाङ्क चूकी गया छे. तेने लीधे दरेक ढालमां ओक ओक क्रमाङ्क वधवाथी कर्तानी गणतरी प्रमाणे छेल्ले २८ ढाल थाय छे, जे वास्तवमा २७ छे. ___ काव्य खूब ज रसालं छे. कथा चमत्कारप्रधान छे. देशीओ पण तद्दन नवी ज जणाय छे. अभयदेवसूरि खरतरगच्छना हता तेवू कथन (ढाल ११ कडी १) तथा अभयदेवसूरिने जयतिहुअण स्तोत्र षडावश्यकना प्रारम्भे बोलवानो देवताई आदेश (ढाल १३ कडी ७) - ओ बे वातो कर्ताना मानसमां पडेला खरतरगच्छना प्रभावनी सूचक छे, सत्य नथी. केमके अभयदेवसूरि चन्द्रकुलना हता, खरतरगच्छना नहि ओ वात नक्कर सत्यरूपे साबित थई चूकी छे. अने देवताई आदेशनी वात पण प्रवादमात्र छे. आ स्तवनमां श्रीअभयदेवसूरि महाराजना थंभण पार्श्वनाथनी प्रतिमा अंगेना प्रसङ्गमां धरणेन्द्र आववानी वात तेमज शेरीसाना प्रसङ्गमां बावन वीरवाळी वात - आवी केटलीक वातोने कविकल्पनामांथी नीपजेला चमत्कारलेखे समजवी जोईए. इतिहास तथा प्रसिद्ध जैन परम्पराने ते वातो साथे कोई मेळ नथी. त्रै.मं.) • ॥ स्थम्भन-सेरीसा-शवेश्वर-पार्श्वस्तवन ॥ ॥ दूहा ॥ सरसतिने समरूं सदा, महिर करे मुज माय; वल्लभ वयण आपे वहि, दुनियाने आवे दाय. १ दीवानि परें दाखवे, जोति करि जग माय; वास करे मुज मुख वळी, पुजिस तोरा पाय. २ गुण गावा गिरुआतणा, उलट अंग न मायः त मुज तुठी तो खरी, इच्छ्यं सिध्ध ज थाय. ३ प्रगट देव प्रथवीतले, परता पूरण पास; थंभ्या नीर जे थंभणे, व्यास्या नगर निवास. ४ सेरिसो संखेसरो, नामे पारसनाथ; ओ त्रिहुं अक समे हुआ, सुरनर सेवे साथ. ५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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