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________________ अनुसन्धान-६३ सखड ओरसीओ सते(?) धोई । तिहां [सू] कडि केसर मिश्रीइं रे । सोवन कचोलिं केसर घोली, भगवंत पूजी सिवपूर वसीई रे ॥२॥ पूजो पू० ॥ प्रभु नवे अंगे कुसुमइं पूजी, कंठि ठवो पुप्फमाल रे । सुगंध कृष्णागर सखरो उखेवो, दीसई दीठा झाकझमाल रे ॥३॥ पूजो पू० ॥ प्रभु मस्तक मुगट हीरे जडीउं, कांने कुंडल सखरां सोहिं रे । बाजुबंधनई बहरखा हाथे, सोवन आंगी देखी सहू मोहि रे ॥४॥ पूजो पू० ॥ चंपकली कोटि प्रभुनई, वली सोहिं नवसर हार रे । श्रीवटनी सोभा अधिकेरी, _ निरखउं छई बहिं नजरि सार रे ॥५॥ पूजो पू० ॥ सुवीर सोनी पुरुष अनोपम, इम थांनिक धन वावई रे । श्रीविजयराजसूरीसर हाथे, बिंब प्रतिष्ठा करावई रे ॥६॥ पूजो पू० ॥ बुधिनिधांन सां राघवजीइं, . . . प्रतिष्ठा विधि सचवावी रे । संवत सत्तर छउत्तर वरसे, जेठ वदि दसमी आवी रे ॥७॥ पूजो पू० ॥ रयणासरमां श्रेयांस प्रतिष्ठा, वार भलो गुरुवार रे । थंभनयरमां प्रभु पधराव्या, . वरत्यो जयजयकार रे ॥८॥ पूजो पू० ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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