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जान्युआरी
२०१४
श्री अमर विजयविरचित श्री श्रेयांसनाथस्तवन
सं. सा. ज्योतिर्मित्राश्री
सुवीर सोनीओ सं. १७०६मां खम्भातमां श्रीविजयराजसूरिना हाथे श्री श्रेयांसनाथनी प्रतिष्ठा करावी, ते प्रसंगने अनुलक्षीने सं. १७१४मां आ स्तवन रचायुं छे. स्तवनना प्रारम्भे श्रीश्रेयांसनाथनुं जीवनचरित्र वर्णव्युं छे. त्यारबाद पूजाविधिनी सामान्य नोंध मूकीने प्रतिष्ठाप्रसङ्ग विशे वात करवामां आवी छे. प्रतिष्ठामां सहाय करनारा राघवजी, पासवीर अने मनजी श्रावकोनो पण उल्लेख थयो छे. अन्तमां प्रभुनी स्तुति करीने काव्य पूरुं कर्तुं छे.
भाग १,
काव्यना कर्ता श्रीअमरविजयजी विशे गुजराती साहित्यकोश पृष्ठ ११मां नीचे मुजब नोंध छे : "तपगच्छना जैन साधु विजयाणन्दसूरिविजयराजसूरिना शिष्य. श्रेयांसजिनस्तवन (र. ई. १६५८) अने पार्श्वनाथस्तुतिना कर्ता."
आ विजयाणन्दसूरि ‘आणसूरगच्छ' ना प्रधानपुरुष हता. जैन परम्परानो इतिहास भाग ४ (सं. - त्रिपुटी) मां तेंमना विशे घणी माहिती सांपडे छे.
प्रस्तुत काव्यनुं सम्पादन नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि - ज्ञानमन्दिर, प्रत नं. ४०९६ना आधारे करवामां आव्युं छे. प्रतनी छायाकृति आपवा बदल ज्ञानमन्दिरना कार्यवाहकोना अमे आभारी छीओ.
॥ ६० ॥ दूहा ||
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पूज्य आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराजना मार्गदर्शनथी ज आ काव्यनुं सम्पादन शक्य बन्युं छे. कृतिमां जोडणी यथावत् जाळवी छे. श्रेयांसनाथस्तवन
सकल जिणेसर चित्त धरी, सिर वहुं तेहनी आण । नरनारि जे नित्य नमई, तेह घरि कोडि कल्याण ॥१॥ पास संखेसर पाय नमु, दोलति दायक देव । कलिकालिं आज जागतो, सारइं सुर नर सेव ॥२॥
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