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________________ ७८ सरसति भगवति भारति, प्रणमुं ताहरा पाय । श्री श्रेयांस जिन गावतां, वांणी द्यइ मुझ माय ||३|| ॥ ढाल ॥ श्रीसंखेसर पाए नमी रे, समरी सदगुरू पाय । श्री श्रेयांस इग्यारमउ रे, थुणता ऊलट थाय ॥१॥ माहरा जिनजी साचउ देव दयाल | आंचली० जंबुदीपमां दीपतुं रे, दाहिण भरत मझारि । सीहपुर नयर सोहामणुं रे, सरग सरिखुं धारि ॥२॥ माहरा ० विष्णु राय तिहां राजिउं रे, प्रबल प्रतापी भूप । तस घरणी विष्णुं सतीं रे, सुंदर सोहिं रूप ||३|| माहरा ० सयन भवन सेज्या भली रे, तिहां पोढ्यां विष्णु नारि । सरग बारमाथी चवी रे, अवतर्यो उदर मझारि ||४|| मारा० कांइ सूती कांइ जागती रे, इषद निद्रा एह | चऊद सपन पूरां लह्यां रे, पीउ नामथी कहुं तेह ||५|| माहरा ० उचो हस्ती ऊजलो रे, बिजिं वृषभ उदार । अनुसन्धान- ६३ त्रीजइं सीह सांभलो रे, चोथई लख्यमी सार ||६|| माहरा० फूलमाला छइ फूलरी रे, छठई निरमल चंद | दिनकर सातमइ दीपतो रे, आठमई धज आनंद ||७|| माहरा० कनक कलस नुंमइ भलो रे, दसमइ पदमसर एह । समुद्र इग्यारमइं सोभतो रे, विमान बारमई गुणगेह ॥८॥ माहरा० रतनरेऊ भलो तेरमइं रे, चऊदमहं अगनि निरधूम | सपन चऊदई ए सही रे, मइ दीठां अनुक्रमिं इम ॥९॥ माहरा० जिन कई चक्री हसई भलो रे, सपनतणि परमाणि । राणी हरख्यां हइंयणुं रे, सांभलि भूपति वांणि ॥१०॥ माहरा० राई सपनवी तेडाविया रे, आव्या जोडि हाथ । आगतिसागति करी घणी रे, पछइ प्रथवीनाथ ॥ ११ ॥ माहरा ० इषद निद्राई राणीइं रे, सपन दीठां श्रीकार । चऊद सपन सोहांमणां रे, फल कहो एहनुं सार ||१२|| माहरा ० सामुद्रीसारित्र करी रे, मनस्युं कीधउं विचार । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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