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जान्युआरी २०१४
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हेमविजय मोटो कविराजो
हेम वडो कविराय.
हीरविजयसूरिरास पृ. ३०२
आ सिवाय तेमना गुरुभाई श्रीविद्याविजयगणीना शिष्य श्रीगुणविजयगणी ओ पण तेमना अधूरा मूकेला ( सुधारो स्वर्गगमनने लीधे अधूरा रहेला) 'विजयप्रशस्ति' नामना महाकाव्यनी पूर्णाहुति करी तेनी अन्तिम प्रशस्तिमां श्रीहेमविजयनी विद्वत्ता अने कवित्वनुं महत्ताभर्युं वर्णन कर्तुं छे.
प्रस्तुत 'कीर्तिकल्लोलिनी' काव्यसम्बन्धे ते ज प्रशस्तिमां तेमणे जणाव्यं छे के
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हीरविजयसूरिरास पृ. २७४
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"स्वर्गकल्लोलिनीतुल्या कीर्तिकल्लोलिनी मता"
खरेखर आ काव्य माटे स्वर्गङ्गानी उपमा जराय अतिशयोक्ति विनानी छे, ओम तेना वाचकने लाग्या विना नहि ज रहे.
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प्रत्येक पद्यनी गगनविहारिणी कल्पनाओ, मनोहर उपमा, उत्प्रेक्षादि अलङ्कारोनी सजावट अने रचनामाधुर्य कोई विद्वान वाचकने मेघदूतादिनी रचनाओने पण भूलावे तेवुं आ खण्डकाव्य छे.
आ • काव्य श्रीविजयसेनसूरिनी स्तुति रूपे ज बनावायुं छे; पण कर्ताओ श्रीविजयसेनसूरिना चरित्र विषेनो उल्लेख प्रथमना बे श्लोकोमां तेमना कमा पिता, रूपश्री माता अने गृहस्थावस्थानुं जेसंग नाम सिवाय कंई पण चरित्रदृष्टिनुं वर्णन नथी कर्यु. चरित्र माटे तो तेमणे विजयप्रशस्ति वगेरे ग्रन्थो बनाव्या ज छे.
कविनी श्रीविजयसेनसूरि प्रत्येनी पूज्यत्व अने मानभरी जे दृष्टि छे ते तेमना अनेक काव्योमां प्रतीत थाय छे. छतां आ काव्यमां तो तेमणे पोतानुं प्रौढ कवित्व सुन्दर लालित्यभरी रचनामां वहेतुं मूकी श्रीविजयसेनसूरि प्रत्येनी भक्ति बताववा साथे आपणा माटे ओक अपूर्व कवित्वभर्यो ग्रन्थ- वारसो सोंपी जनताने ऋणी बनावी छे.
आ काव्य तेमनी नैसर्गिक कवित्वशक्तिनी छाप माटे पूरतुं छे. आ काव्यमां त्रण अधिकारो छे : १. प्रतापाधिकार, २. कीर्त्त्यधिकार अने ३.
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