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अनुसन्धान-६३
सौभाग्याधिकार; अम स्रग्धराछन्दना* कुले २०७ श्लोकमांथी प्रथममा ७६, बीजामां ८९ अने त्रीजामा ४२ श्लोकोथी आ काव्यने पूर्ण कयुं छे.
प्रत्येक अधिकारना प्रत्येक पद्यमां ते ते अधिकारना प्रताप, कीर्ति अने सौभाग्य शब्दनो उल्लेख पर्याय शब्दोथी पण कर्यो छे. आ काव्यनी आ एक विशिष्टता गणाय. प्रत्येक पद्य ओक ओक कल्पनार्नु कोहीनूर-रत्न छे, अम कहेवू अतिशयोक्तिभर्यु नथी. भिन्न भिन्न कल्पनावगाही रत्नोनो बनेलो आ प्रशंसात्मक काव्यरूप हार श्रीविजयसेनसूरिना यशःशरीर पर चढावी तेमनी कीर्तिने अमर करे छे.
अन्ते कवि ज पोताना आ काव्यनी यथार्थतानो स्पष्टताभर्यो उल्लेख करे छे :
नानाश्लेषोक्तियुक्तिप्रकरमकरभूभूरिभावाभिधायिस्फारालङ्कारकाव्यव्रजजलजयुता प्रौढपुण्यप्रवाहा । ' सिञ्चन्ती गोविलासै वनवनमिदं 'कीर्तिकल्लोलिनी'यं,
धामल्लीलामरालैर्भवतु सुगहना गाह्यमानाऽचिरश्रीः ॥ आ ग्रन्थ, संशोधन तेमना समकालीन पण्डित श्रीलाभविजयजीओ कर्यु छे. आ उपरान्त लगभग तेमनी बधीय कृतिओ श्रीलाभविजय पण्डिते तपास्याना केटलाक उल्लेखो मळे छे. नीचे आपेली जैन साहित्यना सक्षिप्त इतिहासमांथी केटलीक माहिती उपयोगी छे ते वाचको समक्ष रजू करूं छु.
पृ. ५८३ – धर्मसागरे सं. १६३९मां जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति पर वृत्ति रची. आ छेल्ली वृत्तिनी अक प्रशस्ति (वे. नं. १४५९)मां अम जणाव्युं छे के ते त. हीरविजयसूरिओ दिवाळीने दिने रची अने तेमां कल्पकिरणावलीकार धर्मसागर उ. अने वानर ऋषिो (विजयविमल) सहाय आपी. तेमज तेनुं संशोधन पाटणमां त. विजयसेनसूरि, कल्याणविजय गणी, कल्याणकुशळ अने लब्धिसागरे कर्यु हतुं. तेनी आ प्रशस्ति हेमविजये रची.
वास्तवमां सौभाग्याधिकारना १८-२२, ४२ अ ६ अनुष्टुप्छन्दना श्लोको अने अन्तिम स्रग्धरा छन्दना श्लोकने बाद करता बाकीना २०० श्लोको शार्दूलविक्रीडित छन्दना छे.
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