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जान्युआरी - २०१४
पं. श्रीहेमविजयगणिविरचितं कीर्तिकल्लोलिनीकाव्यम
- सं. (स्व.) अम्बालाल प्रेमचन्द शाह
(तपगच्छपति श्रीविजयसेनसूरिजीना प्रताप, कीर्ति अने सौभाग्यने हृदयङ्गम रीते वर्णवतुं प्रस्तुत काव्य, तेमना ज साम्राज्यवर्ती पं. हेमविजयजीओ रच्युं छे. कर्तानी गुरुपरम्परा, विद्वत्ता, रचनाकर्म, काव्यनी महत्ता व. अंगे विशद माहिती आपतो श्रीअम्बालाल प्रेमचन्द शाहे लखेलो लेख, जैन सत्यप्रकाश - वर्ष ५, अङ्क १, पृष्ठ ३८-४२मा प्रकाशित थयो हतो. ते "महाकवि हेमविजयगणि" नामनो लेख अत्रे यथावत् मुद्रित करवामां आवे छे)
_ "थोडा समय अगाउ मने 'कीर्तिकल्लोलिनी' नामनी हस्तलिखित प्रति प्राप्त थई हती. आ ओक खण्डकाव्य छे. तेनी रचना कोई अद्भुत हाथे थयेली होवी जोईओ ओम जणातां तेनी तिहासिक माहिती मेळववा में प्रयत्न कर्यो अने तेना संशोधन अंगे आवश्यक सामग्री पण मेळवी. कर्तानी तिहासिक माहितीओ खास मळी शकी नथी, छतां जेटलुं प्राप्त थइ शक्युं ते वाचको समक्ष मूकुं छु. _ 'कीर्तिकल्लोलिनी' नामना खण्डकाव्यना कर्ता पण्डित हेमविजयगणि छे. श्रीहेमविजयजी, गृहस्थावस्थानुं कंइ पण वृत्तान्त, महाप्रयत्ने पण, जाणवा मळी शक्युं नथी; अने तेमना साधुजीवनमां तेमनी अनेक कृतिओ रूप साहित्य-सेवा सिवाय बीजा कंई पण विशिष्ट कार्योनो उल्लेख कोई पण ग्रन्थोमां मळतो नथी. केवळ श्रीहीरविजयसूरिनी सम्राट अकबर साथेनी मुलाकातमां तेओ साथे हता तेवो उल्लेख 'हीरविजयसूरिरास' अने 'सूरीश्वर अने सम्राट' वगेरे ग्रन्थोमांथी मळी शके छे.
तेओ मुनिसुन्दरसूरिनी पट्टपरम्परानी लक्ष्मीभद्रीय शाखाना हता, तेम तेमना 'विजयप्रशस्ति महाकाव्य'ना [पूर्तिकार] गुणविजयजी कृत अन्तिम प्रशस्ति परथी जणाय छे. मुनिसुन्दरसूरि → लक्ष्मीभद्र (लक्ष्मीभद्रीय शाखा)
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