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________________ ८६ अनुसन्धान-६२ चर्चा भी इसमें मिल जाती है । इस दृष्टि से इसे जैन तत्त्वमीमांसा का मुख्य ग्रन्थ माना जाता है। इसी प्रकार उनका पञ्चास्तिकाय नामक ग्रन्थ भी पाँच अस्तिकायों की चर्चा करने के कारण जैन तत्त्वमीमांसा का एक प्रमुख ग्रन्थ माना गया है। प्रवचनसार, नियमसार, रयनसार (प्रवचनसार?), अष्टप्राभृत आदि का सम्बन्ध जैन साधना से रहा हुआ है । अतः ये ग्रन्थ भी किसी सीमा तक जैन तत्त्वमीमांसा और आचारमीमांसा से सम्बन्धित रहे है । दिगम्बर परम्परा के प्राकृत के अन्य प्रमुख ग्रन्थों में गोमट्टसार विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इस ग्रन्थ का मुख्य सम्बन्ध तो जैन कर्म सिद्धान्त से है । इसके अतिरिक्त दिगम्बर परम्परा में कुछ अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थ भी जैन दार्शनिक ग्रन्थों में समाहित किये जा सकते है, जैसे - परमात्मप्रकाश आदि । दिगम्बर परम्परा में कुछ पुराण भी अपभ्रंश भाषा में मिलते है, इनमें भी जैन तत्त्वमीमांसा और जैन आचारमीमांसा से सम्बन्धित विषय विपुल मात्रा में उपलब्ध है । यद्यपि यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जैनों का ज्ञानमीमांसा सम्बन्धी विपुल साहित्य संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध है । प्राकृत आगमिक व्याख्या साहित्य में मुख्य रूप से सूत्रकृताङ्ग नियुक्ति में भी तत्कालीन दार्शनिक मान्यताओं की समीक्षा ही परिलक्षित होती है । नियुक्ति साहित्य का दूसरा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उत्तराध्ययन निर्यक्ति है, जिसमें जैन तत्त्वमीमांसा और आचारमीमांसा की कुछ चर्चा ही परिलक्षित होती है। इसके पश्चात् शेष नियुक्तियाँ मुख्यतया जैन आचार की ही चर्चा करती हैं । नियुक्तियों में आवश्यकनियुक्ति अवश्य ही एक बृहद्काय ग्रन्थ है, इसमें जैन दर्शन एवं जैन आचार पद्धति की चर्चा उपलब्ध होती है । शेष नियुक्तियाँ भी प्रायश्चित्त एवं जैन साधना विधि की चर्चा करती है। नियुक्ति-साहित्य के पश्चात् भाष्य-साहित्य का क्रम आता है । इसमें मुख्य रूप से विशेषावश्यकभाष्य ही ऐसा ग्रन्थ है, जो दार्शनिक चर्चाओं से युक्त है । इसके प्रथम खण्ड में जैन ज्ञानमीमांसा और विशेष रूप से पाँच सानों उनके उपप्रकारों और पारस्परिक सहसम्बन्धो की चर्चा की गई है । इसके तिरिक्त इसके गणधरवाद वाले खण्ड में आत्मा के अस्तित्व के साथस. जैन कर्मसिद्धान्त की गम्भीर चर्चा है । प्रथमतया यह खण्ड गणधरों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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