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________________ ओगस्ट - २०१३ ७३ व्याप्त थाय छे. जो के आ प्रस्तुत ग्रन्थनो अभिप्राय छे. प्रज्ञापनामां तो उत्पाद, समुद्घात अने स्वस्थान - त्रणे रीते लोकना सङ्ख्येय भागमां ज विकलेन्द्रियो कह्या छे. अने विकलेन्द्रियो अल्प होवाथी ते ज युक्तिसङ्गत भासे छे. तत्त्व तो बहुश्रुतो जाणे छे.) अत्रे जे प्रज्ञापना अने जीवसमास वच्चे विसंवाद देखाडायो छे ते विचारणीय छे. केमके प्रज्ञापनाजीनी प्ररूपणा जीवोना स्थानना क्षेत्रने आश्रयीने छे, ज्यारे जीवसमासनी वात स्पर्शनाक्षेत्र अंगे छे. बेमां मोटो तफावत से छे के स्वस्थान, समुद्घात अने उपपात - त्रण रीते जीवो वर्तमानकाळे केटला क्षेत्रने व्यापे छे तेनी प्ररूपणा प्रज्ञापनाजीमां छे, ज्यारे चोक्कस स्थितिमां वर्तमान जीव केटला क्षेत्रने स्पर्शे तेनी विचारणा जीवसमासमां छे के जेमां अतीतकालने पण गणतरीमा लेवामां आवे छे. दा.त. देशविरतिधर जीवोनुं क्षेत्र लोकनो असङ्ख्यातमो भाग छे, कारण के ओ जीवो बहु थोडा छे. पण ओमनी स्पर्शना छ राज जेटली छे, केमके अेक देशविरतिधर जीव मनुष्यलोकथी मरीने अच्युत देवलोकमां जाय तो वच्चे छ राज पसार करे छे. मतलब के ते देशविरतिधरनुं क्षेत्र, मनुष्यलोकमां होय ते समये के अच्युत देवलोकमां होय ते समये, लोकनो असङ्ख्यातमो भाग ज रहे छे, पण स्पर्शना अतीत समयोने पण गणतरीमा लेती होवाथी कुल मलीने छ राज थाय छे. जीवसमास-गाथा १८१मां प्रस्तुत वात स्पष्टतः रजू थई छे : ___ "सट्ठाणसमुग्घाएणुववाएणं व जे जहिं भावा । संपइ काले खेत्तं तु फासणा होइ समईए ॥" हवे विकलेन्द्रियो सर्व लोकमां एकेन्द्रिय व. तरीके उत्पन्न थई शके छे अने सर्व लोकमांथी अकेन्द्रिय व. विकलेन्द्रिय तरीके जन्मी शके छे. तेथी तेओनी स्पर्शना सर्व लोकमां मळी शके छे. पण तेनी सामे कोई पण समये जोईओ तो विकलेन्द्रियो लोकना असंख्यातमा भागमां ज होय छे, केमके ते बहु थोडा छे. प्रज्ञापनानु कथन तेओना व्याप्तिक्षेत्रने अनुलक्षीने छे के जे बहुज थोडं छे. ज्यारे जीवसमासनी विचारणा स्पर्शनाक्षेत्रने अंगे छे के जे सर्वलोक छे. आमां विसंवाद जेवं कशुं ज नथी. आ ज गाथामां थयेलुं मनुष्योनी सर्वलोकस्पर्शनानुं कथन पण आ ज रीते जोईओ तो प्रज्ञापना साथे विसंवादी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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