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ओगस्ट - २०१३
"....जोइसिया देवा संखेज्जगुणा, जोइसिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ, खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया नपुंसया असंखेज्जगुणा, थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया नपुंसया असंखेज्जगुणा, जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया नपुंसया असंखेज्जगुणा, चउरिदिया पज्जत्तया संखेज्जगुणा, पंचिंदिया पज्जत्तया विसेसाहिया..."
(.... (वाणव्यन्तर निकायनी देवीओ करतां) ज्योतिषी देवो संख्यातगणा वधारे छे, तेमना करतां ज्योतिषी देवीओ संख्यातगणी छे. तेमना करतां नपुंसक खेचर पञ्चेन्द्रिय, नपुंसक स्थलचर पञ्चेन्द्रिय अने नपुंसक जलचर पञ्चेन्द्रिय क्रमशः असंख्यगुण-असंख्यगुण छे. तेमना करतां पर्याप्ता चतुरिन्द्रिय संख्यातगुण छे तेमज तेमनी अपेक्षाओ पर्याप्ता पञ्चेन्द्रियो विशेषाधिक छे...) (प्रज्ञा. सू. ९३)
प्रज्ञापनाजीना आ पाठने आधारे देवो करतां पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चो असङ्ख्यगुणा छे ते स्पष्ट छे. केमके ज्योतिषी देवीओ के जे अन्य तपाम देव-देवीओ करतां वधारे छे तेमना करतां पण फक्त नपुंसक पञ्चेन्द्रिय खेचरो ज असंख्यगुण छे, तो तेमना करतां नपुंसक पञ्चेन्द्रिय स्थलचर - नपुंसक पञ्चेन्द्रिय जलचर - पर्याप्ता चतुरिन्द्रिय - पर्याप्ता पञ्चेन्द्रिय अम चढती भांजणीले पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चो असंख्यगुण ज थवाना. माटे प्रज्ञापनाजीना अभिप्राये देवो करतां पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चो असंख्यगुण थाय छे, ज्यारे जीवसमासकार संख्यातगुण कहे छे, तेथी तेमना कथनमा स्पष्ट विसंवाद आवे छे.
परन्तु आपणे प्रज्ञापनाजी जोइशुं तो आपणने जणाशे के मलधारीजी भगवन्ते जेवो पाठ उद्धृत को छे अवो पाठ प्रज्ञापनाजीमा छ ज नहीं. उपर उद्धृत करेला पाठमां ज्यां ज्यां 'असंखेज्जगुणा' छे त्यां त्यां 'संखेज्जगुणा' पाठ ज प्रज्ञापनाजीमां छे. प्रज्ञापनाजीना टीकाकार श्रीमलयगिरिजी भगवन्त 'असंखेज्जगुणा' पाठ केम असङ्गत छे ते दर्शावतां जणावे छे के
___"ताभ्यः खचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका नपुंसकाः सङ्ख्येयगुणाः । क्वचित् 'असङ्ख्येयगुणा' इति पाठः । स न समीचीनः । यत इत ऊर्ध्वं ये पर्याप्तचतुरिन्द्रिया वक्ष्यन्ते तेऽपि ज्योतिष्कदेवापेक्षया सङ्ख्येयगुणा एवोपपद्यन्ते। तथाहि- षट्पञ्चाशदधिकशतद्वयाङ्गलप्रमाणानि सूचिरूपाणि
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