________________
७०
अनुसन्धान-६२
१९९, २३३, २५४, २५६, २६०, २६४, २७४ व. नी टीका') सैद्धान्तिक ग्रन्थोथी जीवसमासगत जुदी प्ररूपणाओने तेओ मतभेद तरीके जोतां ज नथी, विसंवाद ज गणे छे. जेम के देशविरतिनो उत्कृष्ट विरहकाल आवश्यकना मते १२ दिवस अने पञ्चसङ्ग्रहना मते १४ दिवस होय छे. जीवसमासकारे गाथा २६२मां कार्मग्रन्थिक परम्परा प्रमाणे १४ दिवस गणाव्या छे. आ अंगे मलधारी महाराजना शब्दो- "उत्कृष्टतस्त्वावश्यके 'विरयाविरईए होइ बारसग'मिति वचनाद् द्वादश दिनानि विरहकालः प्रोक्तः । अनेन तु कुतोऽपि चतुर्दश दिनान्यसौ लिखित इति, परमार्थमत्र न जानीमः ।" (आवश्यक सूत्र प्रमाणे देशविरतिनो उत्कृष्ट विरहकाल बार दिवस होवा छतां आणे चौद दिवस केम लख्यो हशे तेनो परमार्थ अमे जाणतां नथी.) अत्रे जीवसमासकार महर्षि माटे करेलो 'अनेन' प्रयोग केटलो विचित्र लागे छे !
वळी, मलधारीजी भगवन्त जीवसमासकारना कथननो सैद्धान्तिक ग्रन्थो साथे विरोध दर्शावे ते पण अमुक वखत विचारणीय लागे छे. जेमके - * जीवसमास गाथा-१५२ मां देवो करतां पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोने संख्यातगुण जणाव्या छे. टीकाकार श्रीमलधारीजी भगवन्त प्रज्ञापनाजीना नीचेना पाठने आधारे आ वातने अयोग्य गणावे छे :
१. गाथा मतभेदनो विषय
देवोनी लेश्या
उच्छ्लक्ष्णश्लक्ष्णिकानुं प्रमाण १५७-१५८ भवनपति देवो, रत्नप्रभा नारको, सौधर्मदेवलोकना देवो व.नुं प्रमाण १७५ पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोनुं शरीरप्रमाण २३३ चक्षुर्दर्शननो उत्कृष्ट स्थितिकाल २५४ देवगतिमा अन्तरकाल
सर्वार्थसिद्धमा उत्कृष्ट उत्पादविरहकाल २६० आहारकशरीरनो उत्कृष्ट विरहकाल २६४ परमाणुनो अन्तरकाल २७४
देवगतिमां अल्पबहुत्व गाथा १५२, १९८, १९९नी वात आगळ रजू करी छे.
२५६
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org