SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओगस्ट - २०१३ ५५ इण विधि सिणि(धि) सुख भाग हरंतां, शेष अलपतर रहीयौ । प्रथम समय सिध पर्यय लहीने, सिध सेव्यौ सुख कहीयौ रे वाला । सि० ॥१८॥ जे पूरवलौ सहु नर सुर सुख, सकल कालनौ गुणीयौ । सकल काल के समय अनंते, अनंत वरगि वलि भिणीयौ रे वाला । सि० ॥१९॥ एक समय सिद्ध अनुभूत सुखनै, तदपि तुल्य नवि आवै । अनंतवरग वरगित ते अनंतो, ए विधि आगम गावै रे वाला । सि० ॥२०॥ एक समय सिधि अनुभूत सुख सम, ते सुख यदि नवि होई । अनंत कालना सिध सुख सरिसौ, तद किम होइ न कोई रे वाला । सि० ॥२१॥ यौ सुख यदि सहु गगनि न मायौ, सिध मै केम समायौ । सकल द्रव्य गुण पर्ययवर्ती, केवल जिनि जिम गायौ रे वाला । सि० ॥२२॥ अति सुषम इक परमाणू मै, जिम ए सहुय समायौ । गुण पर्याय अनंतानंता, सिध मै सुख इण न्याया रे वाला । सि० ॥२३।। एक असंभव परतिख दीसै, सिध मै अनंत सुख कहीयै । भूत निगोद तुल्य ए जांणौ, सिद्ध निगोद सरदहीयै रे वाला । सि० ॥२४॥ एक सिद्ध मै सिद्ध अनंता, जैसे जीव अनंता । भूत निगोदै सिद्ध निगोदै, दुख तिम घोर नहि अंता रे वाला । सि० ॥२५।। कारण योगै कारज उपजै, कृत्य न विण कारणता । जिहां कर्मादिक कारण वरतै, तिह दुःख कारज वणता रे वाला । सि० ॥२६।। भूत निगोदै कारण वरतै, अनंत कृत्यकारी । सिद्ध निगोदि कारण नहि तिणसै, सिद्ध अनंत सुख धारी रे वाला । सि० ॥२७॥ मुगति युवति सम तीन भुवन मै, गुणवति युवति न निरखी । एह देस तै गणिका-भासा, सर्वै सीलवती परखी रे वाला । सि० ॥२८॥ आप एक अरु नाथ अनंते, परमेसर सै लीना । सादि अनंत काल लगि पतिकुं, सुख उपजावण पीना रे वाला । सि० ॥२९।। द्रव्यलिंगी तनु वीरजधर, रूपी ए नर इष्टा ।। गणिका जननै मुगति युवति कै, ए जन परम अनिष्टा रे वाला । सि० ॥३०॥ मुगति रमा लोकोत्तर वनिता, एक समय सम कालै । आप इकेली नाथ अनंत सुं, पतिरंजनता पालै रे वाला । सि० ॥३१।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy