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________________ ५६ लौकिक नारी निज इक पति सुं, गाढालिंगन धरती । एक अधिकता इणमे दीसै, गाढालिंगन सक्ता । निज पति कुं, सुख करती रे वाला । सि० ||३२|| अनुसन्धान-६२ नाथ अनंत सुं पति सुख करती, सुख सुं आप विरक्ता रे वाला । सि० ||३३|| जेह अनंत सिद्ध परमेसर, मुगति रमणिसु मिलीया । ते परतिख नहि किंतु परंपर, द्वार सकल क्रम दलीया रे वाला । सि० ||३४|| क्षायिकभावजनक वलि जननी, सुमति सती विख्याता । एहनी तनया केवल कमला, मुगति सखी अवदाता रे वाला । सि० ||३५|| तीर्थंकर चक्री बल ईसर, सेठ रंक वर जीवा । मुगति नार सुं संगम धरीयौ, इण विधि तेह सदीवा रे वाला | सि० ||३६|| क्षायिक जनक सुमति जननी सुं, प्रथम सुं मीलणौ कयौ । तेह प्रसन्न भये तनयानौ, मिलण करायौ गिरीयो रे वाला । सि० ||३७|| जनक जननिनै शिक्षा सेती, प्रमुदित केवल कमला । निज सखी मुगति सै तेह मिलाया, जिन परमुख जीउ विमला रे वाला । सि० ||३८|| जिनवर नै पिण मुगति संग भयौ, तेह परंपर द्वारै । तद का अवर जीवनी गणना, इम गुणियण सुविचारै रे वाला | सि० ||३९|| भोगी गणिका संगसुख सेवै, सादि सांत भंग रंगै । Jain Education International सिद्ध अनंत मुक्ति सुख सेवै, सादि अनंत सु भंगै रे वाला | सि० ||४०|| भुपति सेठ द्रव्यवंत जनकुं, गणिका आदर देवै । दीन हीन कुल जात निःस्वकुं द्यै अपमान सदैवे रे वाला । सि० ॥४१॥ जिनवर चक्री बल पद रंकता, अनुभवि मुगति से मिलीया । ते सहु नै सम भावै गिणीया, क्षीर नीर परि भिलीया रे वाला । सि० ||४२|| भूपति सेठ महा पुण्यवंता, ईश्वर पद भोगवीयौ । गणिका संगै दीन-हीन वलि, रंकपणौ अनुभवीयौ रे विला । सि० ||४३|| जे पूरव भव दीन हीन कुल, मातंगादि लहंता । मुगति संगतै सकल लोकना, नाथ भये ते महंता रे वाला । सि० ॥ ४४ ॥ क्षय करि च्यार करम घन घाती, तेरम गुणमै पाया । लोकालोक प्रकाशक केवल, परम चरम गुण आया रे वाला । सि० ॥ ४५ ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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