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लौकिक नारी निज इक पति सुं, गाढालिंगन धरती ।
एक अधिकता इणमे दीसै, गाढालिंगन सक्ता ।
निज पति कुं, सुख करती रे वाला । सि० ||३२||
अनुसन्धान-६२
नाथ अनंत सुं पति सुख करती, सुख सुं आप विरक्ता रे वाला । सि० ||३३|| जेह अनंत सिद्ध परमेसर, मुगति रमणिसु मिलीया ।
ते परतिख नहि किंतु परंपर, द्वार सकल क्रम दलीया रे वाला । सि० ||३४|| क्षायिकभावजनक वलि जननी, सुमति सती विख्याता ।
एहनी तनया केवल कमला, मुगति सखी अवदाता रे वाला । सि० ||३५|| तीर्थंकर चक्री बल ईसर, सेठ रंक वर जीवा ।
मुगति नार सुं संगम धरीयौ, इण विधि तेह सदीवा रे वाला | सि० ||३६|| क्षायिक जनक सुमति जननी सुं, प्रथम सुं मीलणौ कयौ ।
तेह प्रसन्न भये तनयानौ, मिलण करायौ गिरीयो रे वाला । सि० ||३७|| जनक जननिनै शिक्षा सेती, प्रमुदित केवल कमला ।
निज सखी मुगति सै तेह मिलाया, जिन परमुख जीउ विमला रे वाला । सि० ||३८|| जिनवर नै पिण मुगति संग भयौ, तेह परंपर द्वारै ।
तद का अवर जीवनी गणना, इम गुणियण सुविचारै रे वाला | सि० ||३९|| भोगी गणिका संगसुख सेवै, सादि सांत भंग रंगै ।
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सिद्ध अनंत मुक्ति सुख सेवै, सादि अनंत सु भंगै रे वाला | सि० ||४०|| भुपति सेठ द्रव्यवंत जनकुं, गणिका आदर देवै ।
दीन हीन कुल जात निःस्वकुं द्यै अपमान सदैवे रे वाला । सि० ॥४१॥ जिनवर चक्री बल पद रंकता, अनुभवि मुगति से मिलीया ।
ते
सहु नै सम भावै गिणीया, क्षीर नीर परि भिलीया रे वाला । सि० ||४२|| भूपति सेठ महा पुण्यवंता, ईश्वर पद भोगवीयौ ।
गणिका संगै दीन-हीन वलि, रंकपणौ अनुभवीयौ रे विला । सि० ||४३||
जे पूरव भव दीन हीन कुल, मातंगादि लहंता ।
मुगति संगतै सकल लोकना, नाथ भये ते महंता रे वाला । सि० ॥ ४४ ॥ क्षय करि च्यार करम घन घाती, तेरम गुणमै पाया ।
लोकालोक प्रकाशक केवल, परम चरम गुण आया रे वाला । सि० ॥ ४५ ॥
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