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अनुसन्धान-६२
कमलदलि भमर जिम लीणु छउ तुम्ह पए, एग संवासि हिव चासु दइ सिवपए । रिद्धि-बहुमाण-दाणेण सामिय सयं, करइं गरुया जउ निय-समं सेवयं ॥२४॥ गयणि ठिउ करइ रवि कमल-पडिबोहणं, दर ठिय तुज्झ झाणेण तिम सोहणं । गरुय रेवंतगिरि सोइ सिवदाइगो भेटिउ वाटरि मह पुन्न नर नायको ॥२५।।
॥ घात ॥ धम्मवासर धम्मवासर अज्जु मह नाह, सिरि रेवइगिरि चडिय, नेमिनाह नयण दीठउ अइफलियउ पुन्नतरु, अमिय मेहु मह देहि वूठउ । तुह गइ तुह मइ तुहि हजि गुरु तुह सामिय तुह देव, तिम करि हिव जिस होइ मम भवि भवि तुम्ह पयसेव ॥२६।। मयणि जिणि तुह जगि जंत जगवंतरे, सो वि माहेण सउ हणिय हेलाभरे । एहु माहप्पु तुह सयलि जगि गज्जए, जगह दुजुण जए कवणु नह गज्जुए ॥२७॥ वणगहण जिण-भुवण-बिंब बहु सुंदरो, सांब पज्जून अवलोय सिहरो वरो । गयंदमयकुंड कंचणबलाणाजुउ, अंबिका पमुह बहु गण कंचणमउ ॥२८॥ एहु रेवंतगिरि सुकय-जण-सुल्लहो, तत्थ तियलोयगुरु नेमि जगवल्लहो । नमिय मणरंगि गुणरंगु तसु थुणियए, वरिसए मास दिणु धन्नु करि मुणियए ॥२९।।
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